संगठन की शक्ति
ये बात उस समय की है जब हमारे देश में ईंधन के लिए लकडी या उपलों का उपयोग किया जाता था । इन्हीं से भोजन पकाया जाता था । देखा जाये तो हमारे भारत देश में ऐसे बहुत से नगर और गाँव हैं जहाँ पेड़ बहुत कम होते हैं । यदि ऐसे में उन जगहों पर गाय बैल भी कम हों और गोबर भी कम हो तो रसोई बनाने के लिये लकड़ी या उपले बड़ी कठिनाई से मिलते हैं ।
एक छोटा-सा बाजार था । उसके आस-पास पेड़ भी कम थे और बाजार में किसानों के घर भी कम होने से गाय बैल भी थोड़े ही थे । जलाने के लिये लकड़ी और उपले वहाँ के लोगों को खरीदना पड़ता था । एक बार दो तीन दिन लगातार वर्षा हुई थी, इसी कारण गाँवों से कोई मजदूर बाजार में लकड़ी या उपला बेचने भी नहीं आया । इससे कई घरों में रसोई बनाने को ईंधन ही नहीं बचा था । ईंधन न हो तो अब खाना कैसे बने ।
उस गाँव के दो बच्चे, जो सगे भाई थे, अपने घर के लिये सूखी लकड़ी ढूँढ़ने के लिए निकले । उनके पिता घर पर नहीं थे । उनकी माता बिना सूखी लकड़ी के आखिर रोटी कैसे बनाती और कैसे अपने लड़कों को भोजन खिलाती । दोनों लड़के अपने पिता के लगाये आम के एक पेड़ के नीचे गये । वहाँ उन्होंने देखा कि आम की एक सूखी मोटी सी डाल आँधी के कारण टूटकर नीचे गिरी है ।
बड़े भाई ने कहा – ‘लकड़ी तो मिली है, लेकिन हम इसे ले जायेंगे कैसे ?’
छोटे भाई कहा – ‘हम इसे यहाँ अगर छोड़कर गये तो कोई दूसरा उठाकर ले जायगा ।’
लेकिन वो दोनों भाई करते भी क्या । बड़ा भाई दस साल का और छोटा भाई आठ साल की उम्र का था । इतने छोटे बच्चे इतनी बड़ी लकड़ी उठाते कैसे । इतने में छोटे भाई ने जोर से आवाज देकर बडे भाई को बुलाया । भैया भैया देखिये । बडा भाई ने आकर देखा तो सूखी लकड़ी से गिरे एक मोटे बड़े कीड़े को, जो कि मर गया था, बहुत-सी चींटियाँ उठाकर ले जा रही थी । दोनो भाई देखते ही रहे ।
बड़ेने भाई कहा – ये तो चींटियाँ बडे कीड़े को उठाकर ले जा रही हैं।
भैया इतनी छोटी चौंटियाँ मिलकर इतने बड़े कीड़े को कैसे ले जाती हैं ?’ छोटे भाई ने पूछा !
बडा भाई बोला – ‘देखो तो कितनी सारी चींटियाँ हैं । ये सब मिलकर इस कीड़े को ले जा रही हैं । भाई ये तो कुछ नहीं बहुत-सी चींटियाँ मिलकर तो मरे हुए साँप को भी घसीटकर ले जाती हैं ।’
चींटियाँ कीड़ेको धीरे-धीरे खिसका रही थीं । कीड़ा मोटा होने की वजह से बार-बार लुढ़क जाता था । कभी-कभी दस-पाँच चींटियाँ उसके नीचे दब भी जाती थीं । लेकिन दूसरी चींटियाँ उस कीड़े को हिलाकर झट दबी हुई चींटियों को निकाल देती थीं । काली-काली छोटी चींटियाँ थकने का नाम ही नहीं ले रही थीं । दोनों भाईयों के देखते-देखते वे कीड़े को धीरे-धीरे सरकाकर अपने बिल में ले गयीं ।
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छोटा लड़का तो खुश हो गया, तालियाँ बजाकर कूदने लगा । फिर वह आम से गिरी सूखी लकड़ी पर जाकर बैठ गया और बोला – भैया ! हम लोग क्या चींटियों से भी गये बीते हैं । आप जाकर अपने मित्रों कों बुलाकर ले आओ । मैं यहीं बैठता हूँ । हम सब मिलकर लकड़ी उठाकर ले जायेंगे ।
बड़ा लड़का दौडकर गया गया ओर अपने दूसरे मित्रों को बुलाकर ले आया । बहुत-से लड़के लगे और उन्होंने उस भारी लकड़ी को लुढ़काना शुरु कर दिया । सब बच्चों ने मिलकर वह लकड़ी उन दोनों भाइयों के घरपर पहुँचा दी ।
उन लड़कों की माता ने जब देखा सभी मिलकर इतनी बडी लकडी को ले आये हैं । तब माता ने अपने पुत्रों के साथ आये लड़कों को मिठाई दी और कहा – “बच्चो ! संगठन में बहुत बल होता है । तुमलोग मिलकर कठिन -से-कठिन काम को भी कर सकते हो, कठिन-से-कठिन परिस्थितियों को भी पार कर सकते हो ।
यदि तुम सबलोग मिलकर रहोगे तो कोई भी तुम्हारी कोई हानि नहीं कर सकेगा । क्योंकी संगठन में बहुत बल होता है, आपस में मिलकर रहने से तुम लोगों का मन भी प्रसन्न रहेगा और तुम्हारे जीवन के सभी काम भी बडी सरलता से हो जायेंगे ।
प्रेरणा – इस कहानी से हमें प्रेरणा मिलती है की संगठन में बडा बल होता है । हमें सभी को संगठित रहना चाहिए ।