दिव्य गुरुभक्त बालक आरुणि
प्राचीनकाल में महर्षि आयोदधौम्य हुए जिनके कई शिष्य दिव्य और अलौकिक थे । उन्हीं में से एक थे बालक आरुणि । ये अपने गुरुदेव के सबसे प्रिय शिष्य थे और अपने गुरुदेव के हृदय को जीतकर समस्त शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया था । गुरुकी कृपा से आरुणि को सब वेद, शास्त्र, पुराण बिना पढे ही आ गये थे । सदियों से ये अकाट्य सत्य है कि जो ज्ञान गुरुदेवकी सेवा औऱ कृपा से समझ आता है, वही ज्ञान सफल भी होता है । उसी ज्ञान से जीवन में सुधार और दूसरों का भला भी होता है । जो ज्ञान बिना गुरु के केवल पुस्तकों को पढकर आता है, वह अहंकार को बढा देता है । उस ज्ञान का ठीक उपयोग नहीं हो पाता ।
प्राचीन समय में महर्षि आयोदधौम्य के आश्रम में वैसे तो बहुत से शिष्य रहते थे । पर आरूणि गुरुदेव की बहुत ही प्रेम से सेवा किया करते थे । एक समय की बात है, शाम के समय काफी जोरों से बारिश होने लगी । बारिश का मौसम बीत चुका था । आगे भी बारिश होगी या नहीं, इसका कुछ पता नहीं था । बारिश जोरों से होते देख महर्षि आयोधौम्य ने सोचा कि कहीं अपने धान के खेत में मेड ज्यादा बरसात होने से टूट न जाये । अगर मेड टूटी तो खेत में से सब पानी बह जायेगा ।
और अगर आगे बरसात नहिं हुई तो धान बिना पानी के सूख ही जायेगा । तभी उन्होंने आरुणि को बुलाया और कहा – बेटा आरुणि ! तुम खेतपर आओ और देखो, कहीं मेड टूटने से खेत का पानी न निकल जाये ।
अपने गुरुदेव की आज्ञा से आरुणि उस समय बारिश में भिगते हुए खेत पर चले गये । वहाँ पहुँचकर उन्होंने देखा कि धान के खेत की मेड तो टूट चुकी थी औऱ वहाँ से सारा पानी बाहर जा रहा था । आरुणि ने वहाँ मिट्टी रखकर मेड बाँधने कि बहुत कौशिश कि पर पानी का बहाव इतना तेज था कि जो भी मिट्टी आरुणि डालता वो सब बह जाती थी । जब बहुत परिश्रम करने पर भी मेड न बँध पायी तो आरूणि उसी टूटी मेड पर खुद लेट गये । उनके लेटने से पानी का बहाव रुक गया ।
रातभर आरुणि गुरुआज्ञा शिरोधार्य करके खेत में मेड को रोके पडे रहे । सर्दी से उनका सारा शरीर अकड गया था, लेकिन मन में बस एक ही भाव था कहीं गुरुदेव के खेत का पानी न बह जाये । इस विचार से वो न तो तनिक भी हिले औऱ ना ही उन्होंने करवट बदली । शरीर में भयंकर दर्द होते रहने पर भी वे चुपचाप पडे रहे ।
सुबह होने पर संध्या औऱ हवन करके सब शिष्य जब गुरुदेव को प्रणाम करने पहुँचे । तो महर्षि ने देखा कि आज कहिं आरुणि दिखाई नहिं दिया । महर्षि ने दूसरे शिष्यों से पूछा आरूणि कहाँ है ?
दूसरे शिष्यों ने कहा – कल शाम को आपने आरूणि को खेत की मेड बाँधने भेजा था, तबसे वो लौटकर नहीं आया है ।
इतना सुनते ही महर्षि दूसरे शिष्यों को साथ लेकर आरुणि को ढूँढने खेत की ओर निकल पडे । उन्होंने खेत पर जाकर आरूणि को पुकारा । पर आरूणि ठण्ड के मारे बोल तक नहीं पा रहा था । आरुणि ने किसी तरह से अपने गुरुदेव की पुकार का उत्तर दिया । महर्षि दौडकर जब वहाँ पहुँचे तो आरुणि की गुरुभक्ति देखकर उनकी आँखें भर आयी और उन्होंने आरूणि को उठाकर तुरंत गले से लगा लिया तथा आशिर्वाद दिया – पुत्र आरुणि ! तुम्हें समस्त शास्त्रों का ज्ञान अपने आप ही हृदय में प्रकट हो जाये । गुरुदेव के आशीर्वाद से उनके हृदय में बिना पढे ही समस्त शास्त्रों का ज्ञान प्रगट हो गया । गुरुदेव के आशिर्वाद से आरुणि अपने समय के बडे भारी विद्वान हो गये ।
प्रेरणा – इस कहानी से हमें प्रेरणा मिलती है कि गुरुभक्त, आज्ञाकारी व निरहंकारी शिष्य समस्त ज्ञान को सहज ही पा लेता है ।