दिव्य गुरुभक्त बालक आरुणि (ऑडियो के साथ) | guru shishya katha in hindi with Audio

Written by vedictale

September 9, 2021

दिव्य गुरुभक्त बालक आरूणि guru shishya ki katha hindi me

 

दिव्य गुरुभक्त बालक आरुणि

प्राचीनकाल में महर्षि आयोदधौम्य हुए जिनके कई शिष्य दिव्य और अलौकिक थे । उन्हीं में से एक थे बालक आरुणि । ये अपने गुरुदेव के सबसे प्रिय शिष्य थे और अपने गुरुदेव के हृदय को जीतकर समस्त शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया था । गुरुकी कृपा से आरुणि को सब वेद, शास्त्र, पुराण बिना पढे ही आ गये थे । सदियों से ये अकाट्य सत्य है कि जो ज्ञान गुरुदेवकी सेवा औऱ कृपा से समझ आता है, वही ज्ञान सफल भी होता है । उसी ज्ञान से जीवन में सुधार और दूसरों का भला भी होता है । जो ज्ञान बिना गुरु के केवल पुस्तकों को पढकर आता है, वह अहंकार को बढा देता है । उस ज्ञान का ठीक उपयोग नहीं हो पाता ।

प्राचीन समय में महर्षि आयोदधौम्य के आश्रम में वैसे तो बहुत से शिष्य रहते थे । पर आरूणि गुरुदेव की बहुत ही प्रेम से सेवा किया करते थे । एक समय की बात है, शाम के समय काफी जोरों से बारिश होने लगी । बारिश का मौसम बीत चुका था । आगे भी बारिश होगी या नहीं, इसका कुछ पता नहीं था । बारिश जोरों से होते देख महर्षि आयोधौम्य ने सोचा कि कहीं अपने धान के खेत में मेड ज्यादा बरसात होने से टूट न जाये । अगर मेड टूटी तो खेत में से सब पानी बह जायेगा ।

और अगर आगे बरसात नहिं हुई तो धान बिना पानी के सूख ही जायेगा । तभी उन्होंने आरुणि को बुलाया और कहा – बेटा आरुणि ! तुम खेतपर आओ और देखो, कहीं मेड टूटने से खेत का पानी न निकल जाये ।

अपने गुरुदेव की आज्ञा से आरुणि उस समय बारिश में भिगते हुए खेत पर चले गये । वहाँ पहुँचकर उन्होंने देखा कि धान के खेत की मेड तो टूट चुकी थी औऱ वहाँ से सारा पानी बाहर जा रहा था । आरुणि ने वहाँ मिट्टी रखकर मेड बाँधने कि बहुत कौशिश कि पर पानी का बहाव इतना तेज था कि जो भी मिट्टी आरुणि डालता वो सब बह जाती थी । जब बहुत परिश्रम करने पर भी मेड न बँध पायी तो आरूणि उसी टूटी मेड पर खुद लेट गये । उनके लेटने से पानी का बहाव रुक गया ।

रातभर आरुणि गुरुआज्ञा शिरोधार्य करके खेत में मेड को रोके पडे रहे । सर्दी से उनका सारा शरीर अकड गया था, लेकिन मन में बस एक ही भाव था कहीं गुरुदेव के खेत का पानी न बह जाये । इस विचार से वो न तो तनिक भी हिले औऱ ना ही उन्होंने करवट बदली । शरीर में भयंकर दर्द होते रहने पर भी वे चुपचाप पडे रहे ।

सुबह होने पर संध्या औऱ हवन करके सब शिष्य जब गुरुदेव को प्रणाम करने पहुँचे । तो महर्षि ने देखा कि आज कहिं आरुणि दिखाई नहिं दिया । महर्षि ने दूसरे शिष्यों से पूछा आरूणि कहाँ है ?

दूसरे शिष्यों ने कहा – कल शाम को आपने आरूणि को खेत की मेड बाँधने भेजा था, तबसे वो लौटकर नहीं आया है ।

इतना सुनते ही महर्षि दूसरे शिष्यों को साथ लेकर आरुणि को ढूँढने खेत की ओर निकल पडे । उन्होंने खेत पर जाकर आरूणि को पुकारा । पर आरूणि ठण्ड के मारे बोल तक नहीं पा रहा था । आरुणि ने किसी तरह से अपने गुरुदेव की पुकार का उत्तर दिया । महर्षि दौडकर जब वहाँ पहुँचे तो आरुणि की गुरुभक्ति देखकर उनकी आँखें भर आयी और उन्होंने आरूणि को उठाकर तुरंत गले से लगा लिया तथा आशिर्वाद दिया – पुत्र आरुणि ! तुम्हें समस्त शास्त्रों का ज्ञान अपने आप ही हृदय में प्रकट हो जाये । गुरुदेव के आशीर्वाद से उनके हृदय में बिना पढे ही समस्त शास्त्रों का ज्ञान प्रगट हो गया । गुरुदेव के आशिर्वाद से आरुणि अपने समय के बडे भारी विद्वान हो गये ।

प्रेरणा – इस कहानी से हमें प्रेरणा मिलती है कि गुरुभक्त, आज्ञाकारी व निरहंकारी शिष्य समस्त ज्ञान को सहज ही पा लेता है ।


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