परहित सरिस धर्म नहिं भाई…
एक बार की बात है एक बहेलिया चिडियाँ पकडने का काम किया करता था । वो अपने जाल में फँसाकर चिडियों को पिंजरे में कैद कर बेच दिया करता था । वो निर्दोष चिडियों को बेचकर ही अपनी आजीविका चलाया करता था ।
एक बार जब बहेलिया पेड के नीचे जाल बिछाकर और पास में अपनी चद्दर रखकर बैठा था, तभी वहाँ एक टटिहरी उडती हुई आयी औऱ उस बहेलिये की चद्दर में घुसकर बैठ गयी । बहेलिये को लगा की टटिहरी को तो कोई खरीदेगा नहीं, इस लिए उसे उडा देना चाहिए । जैसे ही बहेलिया टटिहरी को उडाने के लिए आगे बढा तभी उसे वहाँ एक बाज आता दिखाई दिया । बाज को देखकर बहेलिये को समझते देर न लगी की, इस बाज से बचने के लिए ये नन्ही टटिहरी मेरी चादर में आकर छुप गयी है । इस नन्हे पक्षी पर बहेलिये को दया आ गयी, उसने एक बाज को वहाँ से डराकर भगा दिया और उस टटिहरी के प्राण बचा लिये । थोडी देर में टटीहरि भी उसकी चादर से निकलकर उडकर चली गयी ।
उसके कुछ दिनों के बाद बहेलिया बिमार होकर मर गया । यमराज के दूत उसे पकडकर नर्क में ले गये । वहाँ कहीं पापी लोग तेल में तले जा रहे थे, तो कहीं कुछ लोगों के अंग काटे जा रहे थे, कहीं लोगों को आग में पकाया जा रहा था, तो कहीं कोडों से पीटकर उन्हें सजायें दी जा रही थी, कई प्रकार की यातनाएँ देकर उन पापीयों को दंडित किया जा रहा था । ये देखकर बहेलिया डर के मारे काँपने लगा उसको यमदूत यमराज के पास ले गये । यमराज ने जब उसके कर्मों का हिसाब देखा तो उसने आजीवन पाप ही किये थे । निर्दोष पक्षियों को पकडना और उनको मारना ही उसका काम था । तभी वहाँ वही सभी पक्षि आ गये जिन्हें बहेलिये ने मारा और बेचा था । सभी पक्षियों ने भी यमराज से उसे दंडित करने को कहा और कहा की हम भी इसे नोच नोच कर खायेंगे जैसे इसने हमें यातनाएँ दी हैं वैसे ही हम भी इसे यातनाएँ देंगे । यमराज भी उसे दंडित करने ही वाले थे की तभी वहाँ वही टटीहरी आयी और बौली रूकिये महाराज ! इस बहेलिये ने बाज से मेरे प्राणों की रक्षा की थी । इसके हृदय में भी दया भावना है इसे जीवन में एक मौका और देना चाहिए । जब यमराज ने देखा की एक नन्ही टटिहरी उसका पक्ष ले रही है । तब यमराज ने उसे सुधरने का एक मौका देते हुए उसे एक वर्ष की मोहलत औऱ दी और अपने कर्मों को सुधारने को कहा ।
इधर जब उस बहेलिये के परिवार वाले उसे मृत देखकर उसे शमशान में जलाने ही वाले थे की तभी वह बहेलिया चिता से उठ खडा हुआ । बोलने चलने लगा । उसके घर वालों को बहुत प्रसन्नता हुई और सब घर लौट आये ।
घर पहुँचकर बहेलिये को यमराज और टटिहरी की बात याद आई और उसने चिडियों को पकडने का काम छोड दिया और मजदूरी करने लगा । उसने अपने सगे संबंधियों को भी इस काम को करने से मना किया । वह रोज पक्षियों को दाना भी खिलाया करता था । कई चिडियाँ आकर रोज उसके दाने खाती थी । वह रोज भगवान से प्रार्थना करता था । भगवन्नाम का जाप भी करता था । उसने अपना वो वर्ष पुण्यकार्य और भक्ति में लगाया । इससे उसके सभी पाप कट गये । जब वह एक वर्ष के बाद मरा तो उसे लेने के लिए स्वर्ग से विमान आया ।
प्रेरणा – इस कथा से हमें प्रेरणा मिलती है की हमें किसी भी जीव को कभी कष्ट नहीं देना चाहिए । निर्दोष मूक जीवों पर दया करनी चाहिए । जो जीवों पर दया किया करता है । उससे भगवान भी प्रसन्न होते हैं ।
परहित सरिस धर्म नहीं भाई ।
परपीडा सम नहीं अधमाई ।।