भक्तिमती मीराबाई (ऑडियो के साथ)| Meera Bai ki Bhakti hindi me with Audio

Written by vedictale

September 9, 2021

 

भक्तिमती मीराबाई

कहते हैं राजस्थान की धरती मीराबाई की भक्ति और भगवान के प्रति अनन्य प्रेम का प्रमाण है । जहाँ एक भक्त के वश हो भगवान को आना पडा । इतना ही नहीं पग-पग पर भगवान ने अपनी भक्त की रक्षा भी की । ये अदभुत कथा जो भी सुनता है उसके रोम रोम पुलकित हो उठते हैं ।

भक्तिमती मीराबाई का जन्म उस काल में हुआ जब मुग्लों से युद्ध में पुरा राजिस्थान ही नहीं वरन पूरा भारत जूझ रहा था । आजादी की लडाई चरम पर थी । ऐसे में बचपन में ही मीराबाई की माता का देहांत हो गया । मीराबाई इकलौती संतान थी । मीराबाई के पिता रतन सिंह, राणा साँगा के साथ युद्धों को लेकर व्यस्त रहते थे, अतः मीराबाई का लालन-पालन उनके दादाजी ने किया था । मीराबाई के दादजी भी भगवान के परम भक्त थे । दादा की भक्ति भावना का प्रभाव इन पर भी पडा । राणा साँगा काशी जाकर गुरु रविदास का उपदेश सुना करते थे । मीराबाई भी अपने दादा के साथ चित्तौड़ स्थित आश्रम में गुरु रविदास का उपदेश सुनने जाती थी । गुरु रविदास की उपस्थिति में ही कुँवर भोजराज और मीराबाई का विवाह हुआ था । मीराबाई की आयु उस समय 12 वर्ष की थी। इसके बाद ही मीराबाई ने अपने पति एवं अपनी सास की अनुमति से गुरु रविदास का शिष्यत्व भी ग्रहण किया । मीराबाई के भाग्य में गृहस्थ जीवन भोगना विधाता ने नहीं लिखा था । केवल 25 वर्ष की अल्पायु में कुँवर भोजराज का अकस्मात्‌देहांत हो गया । राणा साँगा भी युद्ध में शहीद हो गये । राणा साँगा के पुत्र रतनसिंह और विक्रमजीतसिंह के बीच चित्तौड़ की गद्दी हथियाने के लिए संघर्ष होने लगा । परंतु भक्तिमती मीरा इन सब प्रपंचों से दूर भगवान की आराधना में सदा लीन रहने लगी ।

मीराँबाई ठाकुर द्वारे में पैरों में घुंघरु बाँध लोक लाज का त्याग कर अक्सर नाचा करती थी और भाव भीने आँसूओं से श्रीगीरधर के चरणों को पखार दिया करती थी । पर परिवार वालों ने इस अनन्य भक्तिभाव को न समझ कर । इसे परिवार की लोकलाज और मर्यादा का उल्लंघन समझा । पर मीराबाई ने तो अपना सर्वस्व भगवान कृष्ण को ही सौंप दिया था । उनके अभंगों से इस बात का पता चलता है । ‘मेरो तो गिरधर गौपाल दूसरो न कोय ।’ आज मीराबाई के अभंगों को कई गायकों ने अपने स्वरों में गाया है । कहते हैं राणा साँगा की मौत के बाद मीरा को अनेकों पारिवारिक यातनाओं का सामना करना पडा । परंतु उन्होंने लाखों प्रतिकार के बावजूद भी भगवान कृष्ण की भक्ति नहिं छोडी वे हमेशा भगवान से बातें किया करती थी । ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान प्रगट होकर उनके साथ चौसर खेला करते थे । मीराबाई अक्सर कमरे में भगवान से बातें किया करती थी । उनके अनन्य भक्तिभाव को न समझकर उनके देवरों ने उनको कई बार मारने का भी प्रयास किया । एक बार विक्रमजीत ने आधी रात के समय मीरा को चित्तौड़गढ़ के नीचे बहती हुई गांभीरी नदी में फेंकवा दिया । मगर ‘‘जिसका हरि हो रखवाला, उसका कौन बिगाडनेवाला’’ मीरा वहाँ से भी सही सलामत बच गयीं ।

मीराबाई को मारने के लिए उनके कमरे में पूजा की माला के स्थान पर टोकरी में भयानक विषधर साँप को रख दिया गया ताकि पूजा के समय माला कि जगह जब मीराबाई उसे उठायेगी तो उसके डसने से मीराबाई की मृत्यु हो जायेगी । परंतु जैसे ही मीराबाई ने उस टोकरी को खोला तो देखते ही देखते वो विषधर साँप सुगंधित फूलों की माला में बदल गया । ये भगवान के अनन्य प्रेम का प्रत्यक्ष उदाहरण था ।

हद तो तब हो गयी जब राणा ने मंत्रियों की सलाह से भक्तिमती मीरा को विष देकर मारने की योजना बनाई । मीराबाई को एक विष का कटोरा भरकर भगवान का चरणामृत है ! ऐसे कहकर पीने के लिए दिया । ऊदाबाई इस भेद को जानती थी । उन्होंने मीराबाई को सच्चाई बताते हुए विष पीने से मना भी किया, परंतु मीरा ने कहा जो पदार्थ प्रभु के चरणामृत के नाम से आया हो वो मेरा अनिष्ट कैसे कर सकता है । भगवान कि लीला देखो विष भी अमृत हो गया और मीराबाई उस जहर को हँसते हँसते पी गई, परंतु उन्हें रत्तिभर भी फरक न पडा । भगवान के प्रति ऐसी अन्नय भक्ति देखकर ऊदाबाई भी उनके चरणों में गिर गयी ।

आखिरकार मीराबाई ने छोड दिया घरबार और वृंदावन औऱ मथुरा के लिए हाथ में एकतारा लेकर निकल पडी । भगवान के रस में रमी मीराबाई को अब प्रभु कृष्ण के सिवा किसी संसारिक भाव में रस न था । भक्तिमती मीराबाई की रचनाएँ, गीत और कविताओं का संकलन उनके त्याग, सरलता, करूण स्वभाव, भगवान के प्रति समर्पण और निश्छल प्रेमाभक्ति को दर्शाता है ।

कहते हैं विरक्त भक्तिभाव से भरी मीराँबाई जहाँ भी भगवान के अभंग गाया करती वहाँ सभी लोग मंत्रमुग्ध हो जाते और उनके साथ साथ चलने लगते थे । भगवदभाव सभीकी आँखों से छलकने लगता था । ऐसे ही यात्रा करते करते जब मीराँबाई जब द्वारकापुरी पहुँची, तब तक उनकी भक्ति चरमसीमा पर पहुँच चुकी थी । और मीराँबाई द्वारका में ही सशरीर भगवान श्रीकृष्ण के विगृह में समा गयी इस प्रकार मीराबाई की आत्मज्योती परमात्मा में विलिन हो गयी ।

मीराबाई ने अपने जीवन से ये स्पष्ट किया की भक्त का भगवान के साथ एक अटूट नाता होता है ।

भक्तिमती मीराबाई का जीवन प्रत्यक्ष उदाहरण है कि किस प्रकार सुंदर निर्मल भक्ति की ज्योत सदा भक्त के हृदय में जलती रहती है और भगवान के प्रति जिनका अनन्य भाव है उनकी सदैव भगवान रक्षा भी करते हैं । ऐसे भक्तों के चरणों में नमन !

श्री हरि श्री हरि श्री हरि


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