भक्त धन्ना जाट (ऑडियो के साथ) | Bhakt Dhanna Jat ki kahani hindi me with Audio

Written by vedictale

September 9, 2021

भक्त धन्ना जाट ! bhakt dhanna jat ki katha

 

भक्त धन्ना जाट

भक्त धन्ना जी के माता-पिता सरल भक्त किसान थे । उनके यहां अक्सर साधु-संत आकर एक-दो दिन रुक जाया करते थे । कहा जाता है उस समय धन्नाजी उम्र पाँच वर्ष की रही होगी जब उनके घर एक ब्राह्मण आये, उन्होंने स्नान ध्यान किया और झोली में से शालिग्रामजी को निकालकर उसकी पूजा करने लगे । बालक धन्ना बड़े ध्यान से ये सब देख रहा था । पूजा समाप्त होने के बात बालक धन्ना ने ब्राह्मण से कहा ‘पंडित जी ! एक मूर्ति मुझे भी दे दो । मैं भी आपकी तरह भगवान की पूजा करूंगा ।”

अब ब्राह्मण अपना शालिग्राम तो दे नहीं सकते थे । क्योंकी रोज उसी से पूजा करते थे, पर बाल हठ को रोके कैसे ! बडे असमंजस में पड गये ! तभी पंडित जी को एक युक्ती सुझी ! उन्होंने झट से एक काला पत्थर सिलबट्टा उठाकर देते हुए कहा: ”बेटा ! यही तुम्हारे भगवान हैं । तुम इनकी पूजा करो।”

निर्मल हृदय बालक बोला- पंडित जी ! इनकी पूजा कैसे करनी है ये भी तो बताओ !

पंडित जी बोले – कुछ नहीं बहुत सरल है बेटा बस ‘नहाकर निलहैयो, खिलाकर खैयो’

निर्मल हृदय बालक धन्ना जाट को बड़ी प्रसन्नता हुई । वे तो भगवान की मूरत पाकर नाचने लगे । वे अपने भगवान को कभी सिर पर उठाते और कभी हृदय से लगाते । अब तो बालक धन्नाजाट खेल-कूद भूलकर भगवान की मुर्ति की सरल भाव से पूजा लगे ।

प्रात: स्नान करके अपने भगवान को उन्होंने नहलाया । चंदन न होने पर मिट्टी का तिलक कर दिया । तुलसी दल के बदले में पत्ते चढ़ाए, फूल चढाकर कुछ तिनके तोड लाये और उन्हें जलाकर धूप कर दी । दीपक दिखा दिया । हाथ जोड़कर प्रेम से प्रणाम किया । निश्छल हृदय बालक कि क्रियाएँ देखते ही बनती थी ।

दोपहर में माता ने बाजरे की रोटियां खाने को दीं । धन्ना ने दौडकर वे रोटियां भगवान के आगे रख दी, आखें बंद करके बैठ गया । बीच-बीच में आखें थोड़ी खोलकर देखते भी जाते थे कि भगवान खाते हैं या नहीं । जब भगवान ने रोटी नहीं खाई, तब बालक हाथ जोडकर भगवान को बहुत रिझाने लगा । इस पर भी भगवान ने भोग नहीं लगाया ।

शायद भगवान नाराज हैं इस लिए मेरी दी हुई बाजरे की रोटी नहीं खाते । बीच बीच में भगवान को उलाहने देते – ‘पंडित जी के पास तो कई पकवान मिलते होंगे मेरे पास तो ये सूखी रोटी है इसलिए नहीं खाते न तुम ।’ नहीं खाना है तो मत खाओ मैं भी भूखा रहूँगा, जब तक तुम नहीं खाओगे, मैं भी नहीं खाऊँगा । धन्नाजाट अपने प्रेम हठ में आ गये । उन्हें थोडे ही पता था की ये एक पत्थर है । वो तो साक्षात भगवान मानकर उनसे बातें कर रहे थे । मेरे सामने कोई भूखा बैठा हो और मैं खाऊँ ये अच्छा थोडे ही लगता है । जब तक आप नहीं खाओगे तो मैं कैसे खा लूँ ।

सच ही कहा है हमारे शास्त्रों ने ‘भावो ही विद्यते देवो’ । आपकी श्रद्धा भावना में ही भगवान छुपे हैं बस श्रद्धा निर्मल होनी चाहिए । ठाकुर जी खाते नहीं ! और धन्ना जाट उपवास करते रहे । शरीर दुबला होता जा रहा था । माता-पिता को कुछ पता नहीं कि उनके लड़के को क्या हुआ है ? धन्ना जाट को बस एक ही दुख है : ”ठाकुर जी उनसे नाराज हैं उनकी रोटी नहीं खाते।” अपनी भूख-प्यास तो जैसे धन्ना भूल ही गये थे ।

कब तक ऐसे सरल भक्त से भगवान नाराज रहते । दुर्योधन के मेवा त्यागे साग विदुर घर खायो रे । दुर्योधन जैसों के तो मेवे भी वो त्याग देते हैं परंतु भगवान के परम भक्त के घर तो केले के छिलके भी भाव से भरकर खा लेते हैं । तो इस भक्त की बाजरे की प्रेम भरी रोटियों को भगवान का खाने का मन न हो ऐसा हो नहीं सकता । भगवान उसी पत्थर से प्रगट हो गये और रोटि का भोग लगाने लगे । जब भगवान आधी रोटी खा चुके थे तब धन्ना ने हाथ पकड लिया, बालक बोला अरे रूको जरा ! सारी खा जाओगे मैं भी तो भूखा हूँ । मेरे लिये भी तो छोडो । मैं आज भी भूखों मरूं क्या ? भुख तो मुझे भी लगी है । भगवान भी प्रेम भरी नजरों से भक्त के भावों को देख रहे हैं और भगवान और भक्त मिलकर दोनों बाजरे की सूखी रोटियाँ खा रहे हैं । वाह ! क्या आनंदित दृश्य रहा होगा । प्रेम के भूखे ब्रजकुमार को धन्ना की रोटियों का स्वाद आने लग गया । अब तो भगवान नियमित रूप से धन्ना की रोटियों का नित्य भोग लगाने लगे ।

कुछ सालों के बाद पंडितजी फिर भक्त धन्नाजाट के गांव भागवत कथा करने आए । धन्नाजाट भी उनके दर्शन करने गये । प्रणाम करके पंडितजी से बोले आप जो ठाकुरजी देकर गए थे वे छह दिन तो भूखे प्यासे रहे एवं मुझे भी भूखा प्यासा रखा । परंतु सातवें दिन उन्होंने आखिरकार रोटी खा ही ली । अब तो वो खेत में मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम में मदद भी करते है । अब तो घर में गाय भी है । सात दिन तक आपकी कथा है आपके लिये घी-दूध मैं ही भेजूंगा ।

पंडितजी ने सोचा ये कैसा मूर्ख आदमी है । मैं तो भांग घोटने का सिलबट्टा देकर गया था और ये कहता है भगवान खाते हैं और मेरे खेत में मेरे साथ भी जाते हैं । गांव में पूछने पर लोगों ने बताया कि चमत्कार तो हुआ है । धन्ना अब वह गरीब नहीं रहा । जमींदार बन गया है ।

दूसरे दिन पंडितजी ने धन्ना से कहा – मुझे भी उनके दर्शन करवाओ जो तुम्हारे साथ खेत में जाते हैं ! वो ठाकुर जी !

धन्ना पंडित जी को खेत पर ले गया । पर पंडित जी को कुच न दिखा । हल तो चल रहा था परंतु चलाने वाला न दिखा ! रोटियाँ तो खाई जा रही थी पर खाने वाला न दिखा !

पंडित जी ने धन्ना से कहा – मुझे तो कुछ नहीं दिख रहा ।

तब धन्ना ने भगवान से प्रार्थना की कि इन्हें भी दिखो ! पर भगवान ने मना कर दिया और कहा – धन्ना जो मुझसे सच्चा प्रेम करता है और जो अपना काम मेरी पूजा समझ करता है मैं उसी के साथ रहता हूं । तुम्हारा हृदय निश्छल है इसलिए मुझे देख पाते हो । इसको अभी हृदय की निर्मलता प्राप्त करना बाकी है । इस लिए ये मेरे दर्शन नहीं कर पाता ।

धन्ना जाट के जीवन में कई चमत्कारिक घटनाएँ घटी । धन्ना जी को सबमें भगवान के दर्शन होने लगे ।
एक दिन पिता ने खेत में गेहूं बोने भेजा । मार्ग में कुछ संत मिल गए । संतों ने भिक्षा मांगी । धन्ना तो सर्वत्र अपने भगवान को ही देखते थे । भूखे संत मांग रहे थे । धन्ना ने खेतों में बोने के लिए जो गेहूँ था, वो सारा गेहूँ संतों को दे दिया । यह जानकर कि माता-पिता को दुख होगा ! इस भय से धन्ना जी ने खेत में हल घुमाया और इस प्रकार खेत जोत दिया जैसे गेहूं बो दिया हो ! घर आकर किसी को कुछ नहीं बताया । पर जब भगवद कृपा साथ हो तो गेहूँ कैसे न उगता । बिना बोये ही हर बार की अपेक्षा इस बार तो धन्ना का खेत पहले से भी ज्यादा लहलहाने लगा । भक्त का मान रखने के लिए भगवान ने लीला दिखाई । चारों और लोग प्रशसा करने लगे कि इस वर्ष धन्ना का खेत ऐसा उठा है जैसा कभी नहीं हुआ था । पहले तो धन्नाजाट जी को लगा कि लोग उनके सूखे खेत के कारण व्यंग कसते होंगे । पर जब स्वयं खेत में जाकर देखा तो वह दंग रह गये । हरा भरा लहलहाता खेत देखकर उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा । अपने प्रभु की अपार कृपा समझ कर वे आनंदित होकर भगवान का नाम लेकर गाते हुए नृत्य करने लगे ।

किसी ने सच ही कहा है :- भक्त के वश में हैं भगवान ! जिनका हृदय निर्मल और प्रभु पर विश्वास अटूट है उन्हें अवश्य भगवदकृपा प्राप्त होती है ।


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