सच्चा सुख स्वाधीनता का !
एक बार की बात है एक ऊँट था । उसकी पीठ पर सामान लादकर उसे व्यापारी काफी दूर दूर तक ले जाया करता था । बोझा ढोते ढोते वो थक जाता पर फिर भी वो व्यापारी उसे नहीं छोडता था । एक दिन जब व्यापारी ने उसे कहीं बाँधकर खडा किया । तो वो ऊँट मौका देखकर अपनी नकेल छुडाकर वहाँ से भागकर कहीं दूर चला गया । दौडता दौडता वो ऊँट एक नदी के किनारे पहुँचा । वह अपने पीछे हरे-हरे खेत, और पत्तियों से भरे झाडों को छोड आया था । वह चाहता तो उन हरी हरी घाँस व पत्तियों से अपना पेट भर सकता था । पर वह तो वहाँ से भागता ही रहा ।
उसके सामने अब एक नदी थी । आगे रेत ही रेत थी हरियाली का नामोनिशान तक कहीं दिखाई नहीं दे रहा था । बेचारा वो ऊँट वहाँ आकर रूक गया । दौडते दौडते थक गया था । वहीं थोडी देर बैठ गया । डर के मारे वो बलबला भी नहीं सकता था । उसे डर था कहीं पीछे से कोई आकर फिर उसे पकडकर न ले जाये । उसे बहुत भूख भी लग रही थी । लेकिन पानी के सिवा उसके पास कुछ खाने को था भी तो नहीं । वह लाचार औऱ मजबूर था ।
ऐसे ही उसे दो-तीन दिन बीत चुके थे । भूक से वो ऊँट अधमरा सा हुआ जा रहा था । उसी समय उस ऊँट के पास एक कौआ आकर बैठा । उस ऊँट की ऐसी दशा को देखकर कौए को उसपर दया आयी ।
कौआ बोला – ऊँट भाई ! तुम इतनी तेजी से कहाँ भागे चले जा रहे हो और तुम तो मुझे भूखे भी जान पडते हो । ऐसे रेगिस्तान में कहाँ बीहड में जा रहे हो । मैं उडकर जाता हूँ, तुम मेरे पीछे पीछे आ जाओ । मैं तुम्हें सही रास्ता दिखा दूँगा । तुम्हें हरे भरे खेतों तक पहुँचा देता हूँ । वहाँ तुम्हें पेटभर खाना भी मिलेगा । आराम से खा लेना ।
ऊँट बहुत खुश हो गया । तुरंत चलने को तैयार भी हो गया । परंतु ऊसी समय कुछ सोचकर रुक गया ।
कौआ बोला – क्या हुआ भाई रूक क्यों गये ।
ऊँट बोला – माफ करना भाई पहले ये बताओ कि उस खेत में कोई आदमी तो नहीं आता है ना ।
कौआ ऊँट की बात सुनकर हँसने लगा और बोला – भला ऐसा भी कभी हो सकता है । हरे भरे खेत बिना आदमी के कैसे होंगे । आदमी तो वहाँ आते जाते रहते हैं ।
ऊँट बोला – तब तो मैं यहीं अच्छा हूँ ।
कौए ने समझाया यहाँ रेगिस्तानी बीहड में तुम भूखे मर जाओगे ।
पर ऊँट बोला – भाई भले मर जाऊँ पर यहाँ को नाक में नकेल डालकर वजन मेरी पीठ पर डालकर मुझे कोई चलाया तो नहीं करेगा । यहाँ मैं स्वतंत्र तो हूँ । मैं बडी मुश्किल से स्वतंत्र हुआ हुँ । अब वापिस पराधीन नहीं होना चाहता । ऐसा कहकर ऊँटने चैन की साँस ली ।
सच ही कहा गया है – पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं ।।
पराधीन व्यक्ति को सुख कहाँ ।
प्रेरणा – ये कहानी हमें प्रेरणा देती है की स्वतंत्रता का महत्व क्या है । मजबूरी में किसी काम को करना पडे तो कितनी पीडा होती है और वो ही काम यदि आपकी रूची का हो तो कितनी आसानी से हो जाता है । इसे ही कहते हैं स्वतंत्रता का सुख ।