समर्थ संत का प्रिय शिष्य ।
प्राचीन काल में एक समर्थ संत हुए जो दिव्य शक्तियों के धनी थे । उनका एक प्रिय शिष्य था जो सदैव उन संत के साथ ही रहता था । एक बार की बात है ! समर्थ संत अपने कुछ शिष्यों को साथ लेकर सत्संग के लिये पास ही के गांव में भजन किर्तन के लिए गये थे । जहाँ संत अक्सर जाया करते थे ।
वो संत जिस रास्ते से जाते थे उस रास्ते में एक छोटी नदी पडती थी । जिसमें केवल घुटनों तक ही पानी होता था । समर्थ संत और उनके शिष्य गाँव में पहुँचे और बडे ही भाव से किर्तन भजन औऱ सत्संग कार्यक्रम संपन्न हुआ । जब समर्थ संत अपने सभी शिष्यों के साथ गांव से लौट रहे थे, तब बरसात होने के कारण नदी में पानी खतरे के निशान से ऊपर बह रहा था । नदी में बाढ़ आई हुई थी ! ऐसे समय में जब समर्थ अपने शिष्यों के साथ नदी के पास पहुंचे तब ! समर्थ का प्रिय शिष्य अचानक से दौड़कर समर्थ संत के आगे आगे चलने लगे और सबसे पहले नदी में कूद पडा । नदी के दूसरे किनारे पर पहुंचकर समर्थ के प्रिय शिष्य ने कहा अब आप आ जाइये कोई खतरा नहीं है ।
उसके ऐसे उद्दण्ड व्यवहार से सभी शिष्य कानाफूसी करने लगे कि ये कैसा कुशिष्य है जो संत का भी सन्मान करना भी नहीं जानता ! समर्थ संत का उलंघन करके उनके आगे आगे चलने लगे ! इसके ह्रदय में संतों के लिए कोई मान सन्मान नहीं है ।
सभी शिष्य आपस में बोलने लगे : क्या ये मूर्ख नहीं जानता समर्थ संत अलौकिक शक्तियों के धनी हैं ! हनुमानजी के नित्य दर्शन पाते हैं ! हमरे संत के पास आकाश में उड़ने ! गायब होने ! छोटा और विशाल रूप बनाने की असीम शक्तियां हैं ! ऐसे गुरुदेव का अपमान करते इसको लाज नहीं आयी ! ये सारी बातें समर्थ संत ने भी सुन ली और आश्रम पहुंचकर सभी शिष्यों को बुलाया ।
समर्थ संत तो सबके मन की बात जानते थे, पर सभी शिष्यों के संशय को दूर करने के लिए उन्होंने अपने प्रिय शिष्य को बुलाकर पूछा : बेटा ! तुम अचानक रास्ते में क्यों हमसे आगे आगे चलने लगे थे ? क्या कारण था ?
समर्थ के ऐसा पूछने पर वो प्रिय शिष्य बोला : गुरुदेव ! नदी में बाढ़ आई हुई थी पानी खतरे के निशान से ऊपर बह रहा था । नदी में पानी ज्यादा था कहिं खतरा ना हो इसके लिये मैंने आपसे आगे आगे चलकर, आपसे पहले नदी को पार किया ! जब मुझे लगा की कोई प्राणों का खतरा नहीं है तभी मैंने आप को नदी पार आने का संकेत किया ।
इतना सुन समर्थ बोले : बेटा ! क्या तुम ये नहीं जानते कि मैं समर्थ हूँ ! मेरे पास उड़ने की भी सिद्धि है, मैं तो उड़कर भी नदी पार कर लेता और तुम सभी को भी अपनी दिव्य शक्ति से नदी पार करवा देता ! तब जो उस प्रिय शिष्य ने जो कहा वो सच में कोई सतशिष्य ही कह सकता है !
शिष्य ने कहा गुरुदेव मैं जानता हूँ आप सर्व समर्थ हैं ! आप तो ये नदि तो क्या भयंकर भवसागर भी पार करवा सकते हैं । तो उड़कर उस नदी को पार कर जायें उसमें क्या आश्चर्य है गुरुदेव !
संत बोले : तो फिर ऐसा क्यों किया बताओ और अपने इन सभी गुरुभाइयों का भी संशय दूर करो !
इतना सुन उस शिष्य की आँखें भर आई शिष्य बोला मेरे समर्थ गुरुदेव ! आप मेरे जैसे हजारों शिष्य बना सकते हैं ! पर मेरे जैसे लाखों शिष्य मिलकर भी आप जैसे एक समर्थ संत नहीं बना सकते ! आप हमारे जीवन से कई गुना अनमोल हैं गुरुदेव ! आप हैं तो हमारी संस्कृति ! हमारा देश सुरक्षित है ।
गुरुदेव ! मैं जानता हूँ आप समर्थ शक्तियों के धनी हैं पर, मेरा कर्तव्य क्या ? जिन संत ने देश और समाज को विश्वगुरु बनाने के लिए इतना बलिदान दिया उनके प्राणों पर आँच आये और मैं ये कहकर चुप हो जाऊं के मेरे गुरुदेव तो सर्व समर्थ शक्तिशाली हैं ! वो अपनी रक्षा स्वयम कर सकते हैं ! ऐसा सोचना तो मेरी कायरता होगी गुरुदेव । आप समर्थ हैं पर मेरा कर्तव्य क्या ? आप शक्ति सिद्धियों के धनी हैं पर मेरा शिष्य धर्म क्या ?
धर्मो रक्षति रक्षितः । जो धर्म कि रक्षा करते हैं धर्म उनकी रक्षा करता है ।
उस शिष्य की ये बातें सुनकर सभी शिष्यों के सिर शर्म से झुक गए । सभी ने मन ही मन सोचा हम कितने गलत थे, जो ऐसे सतशिष्य को गलत समझ रहे थे !
तभी समर्थ संत बोले हे शिष्य जब तक तुम्हारे जैसे धर्म रक्षक और संतों का सन्मान करने वाले और निर्भीक शिष्य पैदा होते रहेंगे तब तक इस धरती से धर्म का लोप कदापि नहीं हो सकता !
प्रेरणा : ये कथा हमें प्रेरणा देती है कि हमें सदैव अपनी धर्म, संस्कृति औऱ संतों का सन्मान करना चाहिए ।