आज का हिन्दू पंचांग 10 फरवरी 2023

Written by vedictale

February 9, 2023

  आज का हिन्दू पंचांग  

⛅दिनांक – 10 फरवरी 2023
⛅दिन – शुक्रवार
⛅विक्रम संवत् – 2079
⛅शक संवत् – 1944
⛅अयन – उत्तरायण
⛅ऋतु – शिशिर
⛅मास – फाल्गुन (गुजरात, महाराष्ट्र में माघ)
⛅पक्ष – कृष्ण
⛅तिथि – चतुर्थी सुबह 07:58 तक ततपश्चात पंचमी
⛅नक्षत्र – हस्त रात्रि 12:18 तक तत्पश्चात चित्रा
⛅योग – धृति शाम 04:45 तक तत्पश्चात शूल
⛅राहु काल – सुबह 11:29 से दोपहर 12:54 तक
⛅सूर्योदय – 07:15
⛅सूर्यास्त – 06:33
⛅चंद्रोदय – रात्रि 10:30
⛅दिशा शूल – पश्चिम दिशा में
⛅ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:34 से 06:24 तक
⛅निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:28 से 01:19 तक
⛅व्रत पर्व विवरण –
⛅विशेष – चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है । पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

ब्रह्मचर्य : शरीर का तीसरा उपस्तंभ

🔸शरीर, मन, बुद्धि व इन्द्रियो को आहार से पुष्टि, निद्रा, मन, बुद्धि व इऩ्द्रियों को आहार से पुष्टि, निद्रा से विश्रांति व ब्रह्मचर्य से बल की प्राप्ति होती है ।

ब्रह्मचर्य परं बलम् ।

ब्रह्मचर्य का अर्थः

🔸‘सर्व अवस्थाओं में मन, वचन और कर्म तीनों से मैथुन का सदैव त्याग हो, उसे ब्रह्मचर्य कहते हैं ।’ (याज्ञवल्क्य संहिता)

👉 ब्रह्मचर्य से शरीर को धारण करने वाली सप्तम धातु शुक्र की रक्षा करती है । शुक्र सम्पन्न व्यक्ति स्वस्थ, बलवान, बुद्धिमान व दीर्घायुषी होते हैं ।

👉 ब्रह्मचर्य से व्यक्ति कुशाग्र व निर्मल बुद्धि, तीव्र स्मरणशक्ति, दृढ़ निश्चय, धैर्य, समझ व सद्विचारों से सम्पन्न तथा आनंदवान होते हैं ।

👉 वृद्धावस्था तक उनकी सभी इन्द्रियाँ, दाँत, केश व दृष्टि सुदृढ़ रहती है । रोग सहसा उनके पास नहीं आते । क्वचित् आ भी जायें तो अल्प उपचारों से शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं ।

🌹 भगवान धन्वंतरि ने ब्रह्मचर्य की महिमा का वर्णन करते हुए कहा हैः

🔸‘अकाल मृत्यु, अकाल वृद्धत्व, दुःख, रोग आदि का नाश करने के सभी उपायों में ब्रह्मचर्य का पालन सर्वश्रेष्ठ उपाय है । यह अमृत के समान सभी सुखों का मूल है यह मैं सत्य कहता हूँ ।’

🔸जैसे दही में समाविष्ट मक्खन का अंश मंथन प्रक्रिया से दही से अलग हो जाता है, वैसे ही शरीर के प्रत्येक कण में समाहित सप्त धातुओं का सारस्वरूप परमोत्कृष्ट ओज मैथुन प्रक्रिया से शरीर से अलग हो जाता है । ओजक्षय से व्यक्ति असार, दुर्बल, रोगग्रस्त, दुःखी, भयभीत, क्रोधी व चिंतित होता है ।

शुक्रक्षय के लक्षण (चरक संहिता)

🔸शुक्र के क्षय होने पर व्यक्ति में दुर्बलता, मुख का सूखना, शरीर में पीलापन, शरीर व इन्द्रियों में शिथिलता (अकार्यक्षमता), अल्प श्रम से थकावट व नपुंसकता ये लक्षण उत्पन्न होते हैं ।

अति मैथुन से होने वाली व्याधियाँ

🔸ज्वर (बुखार), श्वास, खाँसी, क्षयरोग, पाण्डू, दुर्बलता, उदरशूल व आक्षेपक (Convulsions- मस्तिष्क के असंतुलन से आनेवाली खेंच) आदि ।

🔸 ब्रह्मचर्य रक्षा के उपाय 🔸

🔹 ब्रह्मचर्य-पालन का दृढ़ शुभसंकल्प, पवित्र, सादा रहन-सहन, सात्त्विक, ताजा अल्पाहार, शुद्ध वायु-सेवन, सूर्यस्नान, व्रत-उपवास, योगासन, प्राणायाम, ॐकार का दीर्घ उच्चारण, ‘ॐ अर्यामायै नमः’ मंत्र का पावन जप, शास्त्राध्ययन, सतत श्रेष्ठ कार्यों में रत रहना, सयंमी व सदाचारी व्यक्तियों का संग, रात को जल्दी सोकर ब्राह्ममुहूर्त में उठना, प्रातः शीतल जल से स्नान, प्रातः-सांय शीतल जल से जननेन्द्रिय-स्नान, कौपीन धारण, निर्व्यसनता, कुदृश्य-कुश्रवण-कुसंगति का त्याग, पुरुषों के लिए परस्त्री के प्रति मातृभाव, स्त्रियों के लिए परपुरुष के प्रति पितृ या भ्रातृ भाव – इन उपायों से ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है ।

🔸 स्त्रियों के लिए परपुरुष के साथ एकांत में बैठना, गुप्त वार्तालाप करना, स्वच्छंदता से घूमना, भड़कीले वस्त्र पहनना, कामोद्दीपक श्रृंगार करके घूमना – ये ब्रह्मचर्य पालन में बाधक हैं । जितना धर्ममय, परोपकार-परायण व साधनामय जीवन, उतनी ही देहासक्ति क्षीण होने से ब्रह्मचर्य का पालन सहज-स्वाभाविक रूप से हो जाता है । नैष्ठिक ब्रह्मचर्य आत्मानुभूति में परम आवश्यक है ।

 गार्हस्थ्य ब्रह्मचर्य 

🔸श्री मनु महाराज ने गृहस्थाश्रम में ब्रह्मचर्य की व्याख्या इस प्रकार की हैः

🔹अपनी धर्मपत्नी के साथ केवल ऋतुकाल में समागम करना, इसे गार्हस्थ्य ब्रह्मचर्य कहते हैं ।

🔹रजोदर्शन के प्रथम दिन से सोलहवें दिन तक ऋतुकाल माना जाता है । इसमें मासिक धर्म की चार रात्रियाँ तथा ग्यारहवीं व तेरहवीं रात्रि निषिद्ध है । शेष दस रात्रियों से दो सुयोग्य रात्रियों में स्वस्त्री-गमन करने वाला व्यक्ति गृहस्थ ब्रह्मचारी है ।

🔸इस प्रकार आहार, निद्रा व ब्रह्मचर्य का युक्तिपूर्वक सेवन व्यक्ति को स्वस्थ, सुखी व सम्मानित जीवन की प्राप्ति में सहायक होता है ।

– 📖 ऋषि प्रसाद, फरवरी 2009


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