भक्त बालक ध्रुव की कहानी (ऑडियो के साथ) | Story of Balak Dhruv in hindi with audio

Written by vedictale

September 20, 2021

भक्त बालक ध्रुव

 

भक्त बालक ध्रुव !

बालक ध्रुव भगवान के अनन्य भक्त थे । जिन्होंने 5 वर्ष की अल्पायु में ही भगवान श्रीहरि के दर्शन प्राप्त किये थे । भगवान से वरदान भी पाये थे । हम आज भी उत्तर दिशा में ध्रुव तारे को देखते हैं । शास्त्रों के अनुसार इसे ध्रुवलोक भी कहा जाता है । ध्रुव अर्थात अटल पदवी ।

प्राचीन समय की बात है राजा उत्तानपाद की दो रानियाँ थी । जिनका नाम सुनीति और सुरूचि था जैसे उनके नाम थे वैसे ही उनके स्वभाव भी थे । सुरुचि अपनी रूची के अनुसार सभी कार्यों को किया करती थी । जबकि सुनीति सभी धर्म मर्यादाओं का पालन किया करती थी । परंतु राजा सुरुचि की सुंदरता पर मोहित थे । दोनों रानियों को एक एक पुत्र थे रानी सुरुची के पुत्र का नाम उत्तम तथा रानी सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव था ।

एक बार राजा अपने सिंहासन पर विराजमान थे । तभी बालक ध्रुव खेलते-खेलते राजा के पास पहुँचा और राजा की गोद में बैठने का प्रयास करने लगा । अपने नन्हे बालक को समीप देख राजा ने प्रेम से उसे उठाकर गोद में बैठा लिया । परंतु जब रानी सुरुची ने ये देखा तो जलन के कारण उनसे ये सहन न हो सका की मेरी सौत का बैटा राजा की गौद में कैसा जा बैठा है । रानी सुरुची ने क्रोध औऱ ईर्षा से भरकर उस बालक को उठाकर नीचे फैंक दिया और अपने पूत्र उत्तम को राजा की गोद में बैठा दिया । पत्नी मोह से बंधे राजा भी मूक दर्शक बने ये अन्याय देखते रहे । रानी सुरुची ने व्यंग कसते हुए बोला कि यदि तुझे राजा की गोद चाहिए तो पहले मेरी कोख से जन्म लेना पडेगा ।

अब 5 वर्ष के अबोध बालक को क्या पता कि राज्य का लोभ क्या होता है । किस कारण वश मेरी सौतेली माँ ने मुझे पिता की गोद से उतार फैंका है । वह रोता हुआ अपनी माता सुनीति के पास पहुँचा । जब माता सुनीति को सब बात का पता चला तो उन्होंने अपने पुत्र ध्रुव को समझाया की हे मेरे बेटे ! तू क्यों इस नश्वर संसार के लिए रोता है । ये सभी पद तो नाशवान है एक न एक दिन सभी नष्ट हो जाते हैं । तुझे शाश्वत पद, अटल पद प्राप्त करना चाहिए ।

बालक बोला – माता ऐसा कौनसा पद है । जिसे मुझे पाना चाहिए ।

माता सुनीति ने कहा – बेटा ऐसा पद भगवान विष्णु की भक्ति से ही प्राप्त हो सकता है । उसके लिए तुम्हें तप करना होगा, भगवान की आराधना व उनके वरदान से ही वो अटल पद पाया जा सकता है ।

माता की बातों का बालक ध्रुव पर गहरा असर पडा । बालक रात्रि के समय उठकर जंगल की ओर निकल पडा । सियारों की आवाजें गूंज रही थी, शेर की दहाड पूरे जंगल में सुनाई दे रही थी । घनघोर रात्री में चलने वाली हवाएँ भी डरा रही थी । परंतु बालक के मन में अटल पद को पाने की जो चाह थी उसके सामने सब नन्हा हो गया था ।

जब बालक जंगल में तप करने जा रहा था उसी समय देवऋषि नारद आकाश मार्ग से गुजर रहे थे । उनकी नजर उस नन्हे बालक पर पडी । अपनी दिव्यदृष्टी से सभी बात को जानने के बाद महर्षि ने उस बालक के समीप जाकर कहा बालक इतनी घनघोर रात्री में कहाँ जाते हो ।

बालक ने ऋषि को देखकर प्रणाम किया और कहा मुनिवर मैं तप करके भगवान श्रीहरि को प्रसन्न करूँगा और अटल पद को पाऊँगा ।

महर्षि ने उस बालक की परीक्षा करने के लिए उसे कई प्रलोभन दिये महर्षि नारद बोले बेटा मैं तुम्हें निष्कंटक राज्य देता हूँ । तुम्हारी माता तुमसे कभी नाराज न होंगी । तुम्हारे पिता भी तुम्हें अपने प्रियपुत्र के रूप में स्वीकार करेंगे । तुम घर लौट जाओ । पर बालक ध्रुव अपनी बातों पर अटल ही रहा । माता की सीख उसके नन्हे हृदय में घर कर गयी थी ।

उस बालक ने नम्रता पूर्वक हाथ जोडकर देवर्षि नारद से कहा – मुनीवर मुझे इस नश्वर संसार का कोई भी पद नहीं चाहिए क्योंकी ये स्थायी नहीं है । ये पद कभी भी नाश हो सकते हैं । मैं तो उस पद को पाऊँगा जो अविनाशी है । बालक की ऐसी श्रेष्ठ बातों को सुनकर देवर्षि प्रसन्न हुए और उन्होंने बालक को भगवन्नाम मंत्र की दीक्षा प्रदान करी । देवर्षि के श्रीमुख से भगवान का मंत्र ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ को पाकर बालक तप करने निकल गया और एक वृक्ष के नीचे खडा होकर भगवान के नाम का जाप करने लगा ।

कई दिवस कई मास बीत गये आखिरकार भगवान वासुदेव ने उस बालक के निश्छल हृदय की भक्ति को देखकर बालक ध्रुव को अपने दर्शन देकर कृतार्थ किया । जैसे ही बालक ध्रुव के सामने उसके इष्ट, उनके आराध्य भगवान श्रीहरि प्रगट हुए तो बालक उनके चरणों में गिर पडा उसकी अश्रुधार ने भगवान के चरणों को पखार दिया । बालक का गला रूँध गया बोलना चाहता था परंतु अबोध बालक के पास शब्द न थे । भगवान श्रीहरि ने प्रेमपूर्वक उस बालक के गाल पर अपना शंख स्पर्श कराया । बालक की बुद्धी में वेदों का प्रकाश जगमगा उठा और बालक ध्रुव ने भगवान श्रीहरि की स्तुति की ।

भगवान श्रीहरि ने प्रसन्न होकर वर माँगने को कहा । बालक ध्रुव ने सारी बात बताकर कहा प्रभू मुझे अटल पद प्रदान किजीये जो नाशवान न हो । भगवान बोले हे पुत्र ऐसा पद तो केवल परमात्मपद है वो मैं तुझे प्रदान करता हूँ औऱ साथ ही तुम्हें आशिर्वाद भी देता हूँ की तुम इस संसार में निष्कंटक राज्य करने के पश्चात ध्रुवलोक को प्राप्त होगे । तुम्हारा स्थान सदैव आकाश में होगा और संसार के सभी जीव तुमसे दृढता, दृढनिश्चय, संयम  और भक्ति की प्रेरणा पायेंगे ।

हमारे धर्मग्रन्थ श्रीमदभागवत महापुराण और विष्णुपुराण में बालक ध्रुव की कथा आती है । इन ग्रंथों के अनुसार ध्रुव भगवान विष्णु के परम भक्त थे । आज भी उत्तर दिशा की और जगमगाता ध्रुवतारा हमें प्रेरणा प्रदान करता है । बालक ध्रुव की कथा पुण्यदायी और पापों का नाश करने वाली है । इस कथा को सुनने से हृदय में सहज ही भक्ति उप्तपन्न हो जाती है ।


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