इंदिरा एकादशी व्रत कथा | Indira ekadashi vrat | एकादशी कब है?

Written by vedictale

September 20, 2021

इंदिरा एकादशी व्रत कथा

इंदिरा एकादशी व्रत कथा

इंदिरा एकादशी व्रत की महिमा का वर्णन दिव्य है । ये एकादशी आश्विन के कृष्णपक्ष में आती है । इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से बडे – बडे पापों का नाश हो जाता है । यदि आपके पितर नीच योनियों में भी हों तो इस एकादशी व्रत के प्रभाव से वे भी सदगति को प्राप्त होते हैं ।

प्राचीन काल की बात है । सतयुग में इन्द्रसेन नामक एक राजा थे, जो माहिष्मतीपुरी राज्य का धर्मपूर्वक पालन करते थे । उनका यश समस्त दिशओं में फैला था ।

राजा इन्द्रसेन भगवान के अनन्य भक्त भी थे । वे भगवान के नामों का जप करते और अध्यात्म चिंतन में लगे रहते थे । एक दिन राजा जब राज सभा में बैठे थे, तभी वहाँ देवर्षि नारद पधारे । राजा ने खडे होकर, हाथ जोडकर विधिपूर्वक देवर्षि का पूजन किया और उनको आसन पर बिठाया ।

देवर्षि नारद बोले –  हे राजन ! मैं जो बात बताने जा रहा हूँ, उसे सूनकर तुम्हें बहुत आश्चर्य होगा । राजन ! मैं जब ब्रह्मलोक से यमलोक गया तो वहाँ यमराज ने मुझे आसन पर बिठाकर भक्तिपूर्वक मेरी पूजा की । उस समय मैंने तुम्हारे पिताश्री को भी देखा । वे व्रतभंग के दोष लगने के कारण वहाँ उपस्थित थे । उन्होंने मुझे तुम्हारे लिए एक संदेश दिया है । उन्होंने कहा है – बेटा ! मेरे किसी कर्मवश मैं यहाँ यमलोक में हूँ । मुझे केवल इंदिरा एकादशी का पुण्य ही उन्नत गति दे सकता है । इसके पुण्य प्रभाव से मैं स्वर्ग में जाऊँगा । हे पुत्र ! मुझे इस गति से मुक्त करने के लिए तुम इंदिरा एकादशी का व्रत कर इसका पुण्य मुझे अर्पण करो तो मेरी सदगति होगी । अतः हे राजन ! अपने पिता की मुक्ति के लिए आपको इंदिरा एकादशी का व्रत करना चाहिए ।

राजा ने पूछा – हे ऋषिप्रवर ! मैं इस इंदिरा एकादशी के व्रत को कैसे करूँ मुझे बताने की कृपा करें ।

नारज जी ने कहा – हे नरेश सुनो ! मैं तुम्हें इस व्रत कि विधि बताता हूँ । आश्विन मास के कृष्णपक्ष में दशमी के उत्तम दिन श्रद्धापूर्वक प्रातःस्नान करके । भगवान का पूजन करे और उस दिन केवल दोपहर को ही भोजन करे । रात्रि को धरती पर सोये । सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर भक्तिभाव से इस उपवास का नियम ले । और भगवान से प्रार्थना करे – हे कमलनयन भगवान ! आज मैं सब भोगों से अलग हो निराहार रहकर कल भोजन करूँगा । हे अच्युत आप मुझे अपनी शरण दें ।

इस प्रकार प्रार्थना करके व्रत करे और इस दिन दोपहर को पितरों की खुशी के लिए । भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम के सामने विधिसहित श्राद्ध करे । ब्राह्मणों को प्रेम से भोजन कराकर दक्षिणा दे । पितरों को दिये हुए अन्नमय पिण्ड को सूँघकर गाय को खिला दे । फिर धूप जलाकर भगवान ऋषिकेश का पूजन व आरती करे । रात्रि वहीं जागरण करे । द्वादशी के दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान का पूजन करके मौन पूर्वक भोजन करे ।

हे राजन ! यदि इस विधि से आलस्यरहित होकर इन्दिरा एकादशी का व्रत किया जाये, तो इस व्रत के प्रभाव से, व्रत करने वाले के पितर प्रसन्न होकर, भगवान विष्णु के वैकुण्ठधाम में चले जायेंगे ।

राजा को ये कहकर देवर्षि अन्तर्धान हो गये । राजा ने देवर्षि के बताये अनुसार इस एकादशी का व्रत किया तब राजा इन्द्रसेन के पिता गरुड पर आरूढ होकर भगवान श्रीविष्णुधाम को चले गये ।

इस प्रकार ये इंदिरा एकादशी के महात्म्य का वर्णन किया गया है । कहते हैं इसको पढने और सुनने से मनुष्य असंख्य पापों से मुक्त हो जाता है ।


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