मांस खाना चाहिए या नहीं? मांस खाना पुण्य है या पाप (ऑडिये सहित) | Mans khana chahiye ya Nahi, Punya ya Pap (with Audio)
एक समय की बात है एक दिन भगवान श्री कृष्ण यमुना तट पर बांसुरी बजा रहे थे । उसी समय एक हिरण दौड़ता हुआ वहाँ आया और भगवान श्री कृष्ण के पीछे जाकर छिप गया । हिरण बहुत डरा हुआ था । तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसके सिर को सहलाते हुए पूछा क्या बात है । उसी समय वहाँ एक शिकारी आ गया । और शिकारी ने भगवान श्री कृष्ण ने कहा यह मेरा शिकार है कृपया आप मुझे इसे दे दें ।
तभी भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि हर जीवित प्राणी संसार में है । सबसे पहले खुद पर अधिकार होता है, ना कि किसी दूसरो पर । यह बात सुनकर शिकारी को क्रोध आ गया । और शिकारी ने कहा तुम मुझे ज्ञान का पाठ मत पढ़ाओ । मैं इतना जानता हूं कि यह मेरा शिकार है और इस पर मेरा अधिकार है । मैं इसी मारकर खाना चाहता हूँ । अर्थात् यह मेरा भोजन है ।
भगवान श्री कृष्ण ने कहा – किसी भी जीव को मारकर खाना पाप है । क्या तुम पाप के भागीदार बनना चाहते हो ? मांसाहार पुण्य है या पाप यह तुम नहीं जानते ?
तब शिकारी ने कहा – मैं आपके जैसा ज्ञानी नहीं हूं । मैं क्या जानू मांसाहार पुण्य है या पाप । मैं तो बस इतना जानता हूं कि अगर मैंने शिकार नहीं किया तो मुझे खाना नहीं मिलेगा । मैं भी तो इस जीव का जीवन मुक्त कर रहा हूँ । और मैं भी तो पुण्य का काम कर रहा हूँ । फिर आप मुझे यह पुण्य का कार्य करने से क्यों मना कर रहे हैं । जहाँ तक मैंने सुना है राजा-महाराजाओं ने भी शिकार किया है । शास्त्र में भी यह बताया गया है । मेरे हिसाब से तो यह पुण्य है । फिर क्या मुझ गरीब को शिकार करना सही नहीं है ? क्या निर्धन व्यक्ति के लिए यह पाप है ? मुझे आप ही बताइए – मांस खाना पाप है या पुण्य ।
शिकारी की ऐसी बातें सुनकर भगवान श्री कृष्ण ने सोंचा, इसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है । माँस खाने के कारण इसकी सोंचने-समझने की शक्ति नहीं है ।
भगवान श्री कृष्ण ने कहा – ध्यान से सुनो एक कहानी सुनाता हूँ । तुम ही बताना मांस खाना पाप है या पुण्य ।
शिकारी सोंचने लगा आखिर ये कहानी सुन ही लेता हूँ । मेरा मनोरंजन भी हो जाएगा और मुझे मांस भी मिल जाएगा । तब भगवान श्रीकृष्ण ने शिकारी को कहानी सुनाई ।
एक बार अकाल की वजह से उत्पादन कम हो गया । प्रजा में भुखमरी छा गयी । और राजा को चिंता होने लगी कि इस समस्या का समाधान कैसे निकाला जाए ? उन्होंने मंत्रियों की सभा बुलायी । राज्य का धनकोष खाली हो चुका था । ऐसे में संग्रहित धन भी खत्म हो जाएगा । सलाहकारों से धनराशि के बारे में सभी से पूछा । अतः प्रस्ताव रखा गया कि धन को उगाने के लिए श्रम करना पड़ता है । और समय भी काफी लगता है । ऐसे में कुछ भी सस्ता नहीं हो सकता । पर आप सभी के विचार में हमें क्या करना चाहिए ? कम और सस्ता उपाय बतायें, जिससे जल्दी हमें खाने के लिए मिल जाए । सबसे सस्ती वस्तु क्या है ?
फिर सभी मंत्रीगण व सलाहकार सोंचने लगे । खाद्य पदार्थ उगने में तो काफी समय लग जाएगा । तभी एक मंत्री ने खड़े होकर कहा – महाराज ! मेरे हिसाब में सबसे सस्ता पदार्थ मांस है । मेरे मुताबिक सबसे सस्ता मांस मिलता है । और इसमें धन की भी हानि नहीं होती और बड़े आराम से हमें मांस भी मिल जाएगा । सभी मंत्रियों ने हाँ-में-हाँ मिला दिया । पर प्रधानमंत्री चुप थे । राजा ने कहा – प्रधानमंत्री! तुम चुप क्यों हो ? तुम भी कहो ।
प्रधानमंत्री ने कहा – मैं नहीं मानता मांस सबसे सस्ता हो सकता है । पर मैं अपनी विचार कल से आपके सामने रखुँगा । आज मुझे क्षमा करें । प्रधानमंत्री कुटिल और बुद्धिमान था ।
प्रधानमंत्री उस प्रस्ताव रखनेवाले सलहाकार मंत्री के घर पहुंचा । जिस सलाहकार ने मांस का प्रस्ताव दिया था, प्रधानमंत्री को अपने घर आया देख तो वह घबरा गया और डर से काँप गया ।
प्रधानमंत्री ने कहा – महाराज बीमार हो गए हैं । उनकी हालत बहुत ही खराब हो गई है । आज शाम से राज्य वैद्य ने कहा है कि उनकी प्राण को बचा पाना मुश्किल है । राज वैद्य की आज्ञा से तुम्हारे पास आया हूँ ।
सलाहकार ने कहा – राज वैद्य ने क्या संदेश भेजा है मंत्री जी ?
प्रधानमंत्री जी ने कहा – महाराज के जान को खतरा है ।
क्या समस्या हो गई है ?
प्रधानमंत्री ने कहा – किसी सप्रिय आदमी की एक तोला मांस चाहिए । तभी महाराज बच पायेंगे । खासकर तुम्हारा । तुम इसके लिए मुंह मांगी रकम ले सकते हो । चाहो तो प्रधानमंत्री का पद भी ले सकते हो । मैं आपको 2 लाख स्वर्ण मुद्राएं भी दे सकता हूं । इसके अलावा एक बड़ी जागीर भी आपके नाम कर दी जाएगी ।
सलाहकार प्रधानमंत्री के पैर पकड़ते हुए, गिरते हुए बोला – यह बात किसी और को पता न चले । आखिर मैं ही न रहुँगा तो स्वर्णमुद्रायें किस काम की । अर्थात् मुझे क्षमा करें । मैं मांस नहीं दे सकता । प्रधानमंत्री से याचना की – चाहे तो मेरा सबकुछ ले लो आप 2 की जगह 4 लाख स्वर्ण मुद्राएं मेरे पास से ले जाओ । लेकिन मुझे जाने दो ।
प्रधानमंत्री वहाँ से स्वर्ण मुद्राएँ लेकर चला गया ।
राजा के सभी सलाहकारों ने अपने बचाव के लिए प्रधानमंत्री को कोई 1 लाख, कोई 3 लाख स्वर्ण मुद्राएँ दी ।
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इस प्रकार प्रधानमंत्री ने एक ही रात में 1 करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ जमा कर ली । और सुबह होने से पहले ही अपने महल में पहुंच गया । अगली सुबह राज्य सभा में सभी समय से पहुँच गया । कोई भी किसी को रात की बात नहीं बता रहा था ।
थोड़ी देर बाद राज्यसभा में अपने चिर-परिचित अंदाज में राजा आये । और कहीं से भी अस्वस्थ नहीं लग रहे थे । जैसे लग रहा था कि राजा को तो कुछ हुआ ही नहीं । सभी मंत्रीगण सोचने लगे वास्तव में प्रधानमंत्री ने उनसे झूठ बोला था । सभी के मन में यह विचार चल रहा था, तभी प्रधानमंत्री ने राजा के समक्ष एक करोड़ मुद्राएँ लाकर रख दिए ।
राजा ने कहा तुम इतनी स्वर्ण मुद्राएँ कहां से लाये हो । तब प्रधानमंत्री ने जवाब दिया महाराज आपकी जान बचाने के लिए मांस तो नहीं मिला । यह मुद्रा है । अब आप ही बताइए कि मांस सस्ता है या महंगा ?
राजा को बात समझ आ गई । उन्होंने प्रजा से अतिरिक्त परिश्रम करने का निवेदन किया । और राजकीय अनाज भंडार में से निकालकर राजनीति की स्वर्ण मुद्राएं किसी कार्य के लिए और श्रमिकों के कल्याण के लिए दे दी गई ।
कृषि की गयी । फल, सब्जियाँ, खेतों में हरियाली, मौसम अनुकूल हो गया । नजाकत कल्याण विभाग इस तरह राज्य का खाद्य संकट का निदान हुआ ।
भगवान कृष्ण की वाणी सुनकर शिकारी परिपूर्ण हो गया । और शिकारी ने भगवान के आगे हाथ जोड़कर कहा – मुझे क्षमा कर दीजिए । आज के बाद मैं कभी शिकार नहीं करूंगा, कभी मांस नहीं खाऊंगा ।
शिकारी को समझ में आ गया – “महानता तो जीवन लेने में नहीं, बल्कि जीवन देने में हैं ।”