नागार्जुन की कथा – अमृत रसायन बनाना, सिर काटने पर भी न कटना | Nagarjuna ki katha (भाग-1)

Written by vedictale

December 5, 2022

नागार्जुन की कथा - अमृत रसायन बनाना, सिर काटने पर भी न कटना Nagarjuna ki katha (भाग-1)

नागार्जुन की कथा – अमृत रसायन बनाना, सिर काटने पर भी न कटना | Nagarjuna ki katha (भाग-1)

रसायनशास्त्र के जनक – नागार्जुन

राजा का नाम चरायु था और नगर का भी नाम चिरायु था । उसका मन्त्री था नागार्जुन, जिसकी बोधिसत्त्व के अंश से उत्पत्ति: हुई थी और जो अतिशय दयालु, दानशील तथा बुद्धिशाली व्यक्ति था। रसायनशास्त्र में भो वह पारंगत था। अपनी इस विद्या के सहारे उसने स्वयं अपने को और अपने राजा को जरा-रहित एवं चिरजीवी कर लिया था।

नागार्जुन के पुत्र का मरना और अमृत रसायन बनाना

अचानक एक दुर्घटना हो गयी । मन्‍त्री नागार्जुन का एक पुत्र मर गया । इस पुत्र के प्रति नागार्जुन का अतिशय स्नेह था। पुत्र की मृत्यु से व्यथित नागार्जुन ने निश्चय किया कि मर्त्यलोकवासियों की मृत्यु पर नियंत्रण किया जाय । तब उसने “अमृत रसायन” की रचना के लिये औषधि-संग्रह किया ।

यह अमृत रसायन योग प्रायः तैयार हो गया था । उसमें केवल एक औषधि का सम्मिश्रण ही अवशिष्ट था कि देवों के देव इन्द्र को इसका पता चर गया । इन्द्र ने देवताओं से मन्त्रणा करके अश्विनीकुमारों को नागार्जुत के पास भेजा, यह सन्देश देकर – “तुम यह क्या कर रहे हो ? मन्‍त्री होकर अनीति की ओर अग्रसर क्यों हो रहे हो ? क्या तुम प्रजापति को जीतने की कामना कर रहे हो ? प्रजापति के द्वारा निर्मित इन मरणधर्मा मानवों को अमृत पिला कर क्‍या तुम देवताओं के समकक्ष उन्हें अमर बना देना चाहते हो ? यदि तुम्हारी यह योजना सफल हो जाती है तो देवों और मनुष्यों में आखिर क्या अन्तर रह जायेगा ? यष्टव्य और याजक, पूज्य और पूजक का जो एक भाव है, जिससे इस जगत की स्थिति चल रही हैं; वह क्रम अनायास ही टूट जायेगा । इसलिए, मैं तुम्हें सम्मति दे रहा हूँ – मेरी बात मानकर इस अमृत रसायन की रचना को छोड़ दो । अन्यथा सारे देवता तुम पर कुपित हो उठेंगे और निश्चय ही तुम्हें अभिशप्त कर देंगे। तुम्हारा पुत्र, जिसकी मृत्यु पर तुम इतने व्यथित हो, तुम्हें मालूम होना चाहिए कि वह स्वर्ग में आ पहुँचा है। अब तुम और क्या चाहते हो ?”

अश्विनीकुमार द्वारा नागार्जुन को समझाकर रोकना

अश्विनीकुमार यह सन्देश लेकर नागार्जुन के पास जा पहुँचे। पूरी बात जानकर नागार्जुन इस सोच में पड़ गया कि-यदि मैं इन्द्र का आदेश नहीं मानता हूँ तो अन्य देवताओं के कुपित होने की बात जाने दो, मुझे शाप देने के लिये तो ये दोनों अश्विनीकुमार ही पर्याप्त हैं। ठीक है, मैं अमृत की संरचना अब नहीं करूँगा । मेरा मनोरथ सिद्ध न हो तो भी क्‍या है ! अपने प्राग्जन्म के सुकृत्यों से पुत्र ने सद्‍गति पा ली है । अब मुझे और क्या चाहिए ?

नागार्जुन ने विनयपूर्वक अश्विनीकुमारों से निवेदन किया – ‘महानुभावो, यदि आप इस समय मेरे पास नहीं आते तो केवल पाँच दिन के भीतर मैं अमृत की सिद्धि कर लेता और यह सारी पृथ्वी अजरा-अमरा हो गयी होती ।

मैं देवाधिदेव इन्द्र की आज्ञा को नतशिर होकर स्वीकार कर रहा हूँ। अब अमृत की रचना कदापि नहीं करूँगा ।’

और सचमुच ही नागार्जुन ने करीब-करीब तैयार उस अमृत को गड्ढा खोदकर मिट्टी में, अश्विनीकुमारों की उपस्थिति में ही, दबा दिया ।

अश्विनीकुमारों ने स्वर्ग में जाकर जब देवराज को यह सन्देश सुनाया तो वे परम सन्तुष्ट हुए ।.

संगठन की शक्ति (प्रेरणादायी कहानी) Sangathan Ki Shakti (prerak kahani)

युवराज की माता द्वारा नागार्जुन का सिर काटने का उपाय सुझाना

राजा चिरायु ने अपने एक पुत्र जीवहर को युवराज पद पर अभिषिक्त किया । युवराज बना वह राजपुत्र हर्षित होता हुआ अपनी माता रानी धनपरा के पास प्रणाम करने पहुँचा तो माता ने एक लम्बी साँस लेकर कहा – ‘बेटा, यह युवराज पद पाकर तुम व्यर्थ ही इतने आह्लादित हो रहे हो। इस पद को तुम किसी तपस्या के बल से तो पा नहीं रहे हो । यह तो केवल परम्परा का पालन हो रहा है। तुम जानते हो, तुम्हारे कितने भाई युवराज बने और दुनिया से चले गये । किसी को भी राज्य-प्राप्ति न हुई, यह विडम्बना देखो । तुम्हें शायद मालूम न हो, मन्‍त्री नागार्जुन महान आयुर्वेदज्ञ है। उसने राजा को एक ऐसा रसायन खिला दिया है, जिसके बल से वह सैकड़ों वर्षों तक इसी प्रकार जीवित रहेगा । न तो उस पर बुढ़ापा आयेगा और न वह मृत्यु की ओर जायेगा ।

“कौन जानता है कि तुम्हारी तरह और कितने राजकुमार युवराज बनेंगे और राज्यसिंहासन पर बैठने की अभिलाषा लिये ही इस दुनिया से चले जायेंगे !

इस स्थिति में यदि सचमुच ही तुम राजा बनने के इच्छुक हो तो मैं तुम्हें एक उपाय सुझा रही हूँ ।

लोभ की सजा ! (प्रेरक कहानी ऑडियो सहित) | Lobh ki Saja (Prerak kahani in hindi with Audio))

“मन्त्री नागार्जुन प्रति दिन स्नान-पूजा से निवृत्त होकर आहार करने के पूर्व इस प्रकार की घोषणा करता है कि – “किसे क्या चाहिये, जो उसे दिया जाय ?” तो तुम ऐसा करो कि ठीक उसी समय नागार्जुन के आगे पहुँच कर माँग पैदा करो कि “मुझे अपना सिर दीजिये ।” सत्यवादी नागार्जन निश्चय ही अपना वचन पूरा करेगा और तुम्हारे लिये अपना सिर काट देगा। उसके मरने पर तुम्हारा पिता यह राजा या तो मन्‍त्री के शोक में स्वयं मर जायेगा या वीतराग होकर वनवासी हो जायेगा । बस, राज्यप्राप्ति का इसके अतिरिक्त और उपाय तुम्हारे लिये नहीं है ।

माता की सम्मति से राजपुत्र को सन्‍तोष हुआ। उसने मल में निश्चय किया – ‘मैं ठीक ऐसा ही करूँगा, जैसा माँ ने निर्देश दिया है ।’

राज्य-लोभ कितनी बड़ी चीज होती है कि आदमी जिस पर बड़े से बड़े स्नेह का भी बलिदान अनायास ही कर देता है !

(क्रमशः)

 


Share to the World!

Subscribe Here

vedictale.com की हर नई कथाओं की notification पाने के लिए नीचे अपना नाम और इमेल डालकर सबस्क्राईब करें।

New Stories

Related Stories

error: Content is protected !! Please read here.