नागार्जुन की कथा – सायनशास्त्र के जनक, सिर काटने पर भी न कटना | Nagarjuna ki katha (भाग-2)

Written by vedictale

December 6, 2022

नागार्जुन की कथा - रसायनशास्त्र के जनक, सिर काटने पर भी न कटना Nagarjuna ki katha (भाग-2)

नागार्जुन की कथा – रसायनशास्त्र के जनक, सिर काटने पर भी न कटना | Nagarjuna ki katha (भाग-2)

योजना के अनुरूप जीवहर को नागार्जुन से सिर माँगने जाना

जैसा कि राजपुत्र जीवहर ने निश्चय कर लिया था – ठीक भोजन की बेला पर, वह नागार्जुन के सम्मुख जा खड़ा हुआ । सदा की भाँति नागार्जुन ने अपनी घोषणा दुहराई – ‘किसे क्या चाहिये, जो उसे दिया जाय ?’ और जीवहर ने तत्काल नागार्जुन से उसके सिर की माँग कर दी ।

इस माँग पर नागार्जुन क्षण भर के लिये स्तब्ध रह गया। फिर उसने शान्तभाव से राजपुत्र से कहा – ‘वत्स, मुझे आश्चर्य हो रहा है कि मेरे सिर का तुम क्या करोगे? आखिरकार मेरा यह सिर है क्‍या? मांस, अस्थि और केश – इनका एक समूह ही तो है । तब यह ऐसी बेकार-सी चीज तुम्हारे किस काम आयेगी ? तुम इसका क्‍या उपयोग करोगे ? फिर भी यदि तुम्हारा इससे कुछ कार्य सिद्ध होता हो तो लो इस सिर को अभी काट लो ।’

जीवहर द्वारा बार-बार नागार्जुन का सिर काटने पर भी न कटना

नागार्जुन ने अपनी गर्दन उस राजपुत्र के आगे झुका दी। लड़के ने पूरी सामर्थ्य से नागार्जुन की गर्दन पर खड्ग-प्रहार किया। गर्दन नहीं कटी खड्ग टूट गया । वह दूसरा खड्ग लाया और फिर वही हुआ | गरदन नहीं कटी । खड्ग टूट गया । इस तरह जब बार-बार राजपुत्र खड्ग-प्रहार कर रहा था और नागार्जुन की गर्दन नहीं कट रही थी – अचानक राजा चिरायु उधर आ पहुँचे । राजा उस दृश्य से स्तम्भित रह गये । उन्होंने अपने पुत्र का हाथ, पकड़कर उसे आगे प्रहार करने से रोक दिया ।

तब नागार्जुन ने राजा चिरायु से निवेदन किया – “महाराज, मुझे अपने पूर्व जन्मों का स्मरण है। इसके पूर्व अपने निन्‍यानबे जन्मों में भी मैं अपने सिर का दान कर चुका हैं। यह मेरा सौवाँ जन्म है और इस जन्म का भी शिरोदान मुझे करना ही है। इसलिये आप कुछ भी न बोलें । क्योंकि मेरे द्वारा से कभी कोई प्रार्थी खाली हाथ नहीं लौटा । आपके इस पुत्र के लिये मैं अपना यह सिर दूंगा ही । केवल आपसे अन्तिम भेंट करने के लिये ही जान-बुझकर मैंने इतना विलम्ब किया ।’

नागार्जुन द्वारा बनाये गये रसायन को लगाना और सिर कट जाना

बात यह थी कि नागार्जुन की गर्दन रसायन-प्रयोगों के कारण इतनी दृढ़ बन गयी थी कि उस पर किसी भी शस्त्र का कोई प्रभाव होता नहीं था। अपने प्रिय राजा का आलिंगन करने के बाद नागार्जुन कपने औषधि भण्डार से एक चूर्ण निकाल लाया और राजपुत्र के कृपाण पर उसका लेप कर दिया । फिर राजपुत्र से कहा – ‘अब तुम कसकर मेरी गदन पर प्रहार करो ।’

नागार्जुन ने गर्दन झुकायी । राजपुत्र ने कृपाण का प्रहार किया। सड़ाक से नागार्जुन का सिर ऐसे कट गया मानो किसी कमल को उसके डण्ठल से तोड़ दिया गया हो ।

नागार्जुन के वियोग में राजा प्राणत्याग करना चाहा किंतु तभी आकाशवाणी का होना

राजा चिरायु अपने प्रिय सखा के इस असह्य वियोग से जब प्राणत्याग करने को उद्यत हो गये तो नगर में चारो ओर हाहाकार मच गया । किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाय और कैसे राजा की प्राण-रक्षा हो । तब सहसा आकाशवाणी हुई – ‘राजन्, यह अकार्य मत करो ! तुम्हारा यह सखा नागार्जुन सर्वथा अशोच्य है, और अपुनर्जन्मा होकर बुद्ध के समान गति को प्राप्त हो गया है ।’

इस अशरीरी वाणी को सुनकर राजा प्राण-त्याग से तो विमुख हो गया, परन्तु उसका हृदय इस घटना से इतना व्यथित हो उठा था कि राजसिंहासन तजकर वह वीतराग हो वन में चला गया । और वहाँ घोर तपस्या करके अन्त में परमगति को प्राप्त हो गया ।

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छल से प्राप्त जीवहर का राज्य में अराजकता फैलना और नागार्जुन के पुत्र द्वारा उसका वध होना

इस प्रकार जीवहर को पिता का राज्य मिल गया। परन्तु वह अधिक दिनों तक राज्य-सुख नहीं भोग सका । देखते-देखते राज्य में चारो ओर अराजकता फैलने लगी और उसी अस्थिरता के बीच पिता के वध से क्षुब्ध हुए नागार्जुन के पुत्रों ने जीवहर का वध कर दिया । पुत्र की इस मृत्यु से शोकविह्वला माता का भी प्राणान्त हो गया । अनाचार के मार्ग पर चलनेवालों का भला कल्याण कैसे हो सकता है ?

मन्त्रियों ने सोच-समझकर दूसरी रानी के शतायु नाम वाले पुत्र को राज्य-भार सौंप दिया ।

इस प्रकार नागार्जुन की यह अद्भुत कहानी समाप्त हो गयी ।

इस पृथ्वी के प्राणियों की मृत्यु पर विजय की जो कल्पना नागार्जुन ने की थी, देवताओं ने उसे नहीं सहा और स्वयं नागार्जुन भी मृत्यु के मुख में चला गया ।

दुखों से भरी हुई यह दुनिया अनित्य हो रह गयी । आज हम प्राणियों के बीच कोई भी मृत्यु पर विजय पाने के लिये हजार कोशिशें क्यों न करे, कुछ भी फल नहीं होगा । होगा वही जो विधाता चाहेगा ।

नागार्जुन की कथा – अमृत रसायन बनाना, सिर काटने पर भी न कटना | Nagarjuna ki katha (भाग-1)


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