Navratri 2021: नवरात्रि का महत्व एवं उपासना विधि | Navratri ke mahatva & Upasana Vidhi (ऑडियो सहित)

Shardiya Navratri 2021 Navratri 2021 Muhurat नवरात्रि का महत्व एवं उपासना विधि

 

Navratri 2021: नवरात्रि का महत्व एवं उपासना विधि

नवरात्रि का महत्व हमारे हिन्दू धर्म में विशेष रूप से माना गया है । नवरात्रि हिन्दुओं का महत्वपूर्ण त्यौहार है । जिसे पूरे भारतवर्ष में बडे उत्साह के साथ मनाया जाता है । इन दिनों में देवीमाँ शक्ति की उपासना विशेष रूप से की जाती है । नवरात्रि शब्द वास्तव में संस्कृत का शब्द है । जिसका अर्थ हिन्दी में होता है ‘नौ रातें’ । नौ रातों और दस दिन के दौरान देवी माँ शक्ति के नौ रूपों की पूजा उपासना होती है । दसवाँ दिन दशहरे के रूप में मनाया जाता है । नवरात्रि में देवीमाँ के तीन रूपों – माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती या माँ दुर्गा की पूजा की जाती है । माता आद्यशक्ति के नौ रूपों की पूजा भी विशेष रूप से इन दिनों में की जाती है जो इस प्रकार हैं –

nav-durga-ke-nav-roop-in-hindi (2)

नौ देवियों के नाम और फोटो, 9 देवी के नाम, नौ देवियों के नाम और स्थान, माँ दुर्गा के नौ रूप फोटो, माँ दुर्गा के नौ रूपों की जानकारी, maa durga all roop with name

प्रथम माता शैलपुत्री – अर्थात पर्वत पुत्री के रूप में जिनकी पूजा होती है वो देवीमाँ ।

दूसरी माँ ब्रह्मचारिणी – अर्थात ब्रह्ममें विचरण करने वाली माँ ।

तीसरी माँ चंद्रघंटा – अर्थात चन्द्रमा की तरह कान्तीमान माँ ।

चौथी माँ कूष्माण्डा – अर्थात पूरा विश्व जिनके चरण में है वो माँ ।

पाँचवी माँ स्कंदमाता – अर्थात स्कंद (स्वामी कार्तिकेय का एक नाम) की माता ।

छठी माता कात्यायनी – अर्थात कात्यायन आश्रम में अवतीर्ण हुई माता ।

सातवीं माँ कालरात्रि – अर्थात काल का नाश करने वाली माता ।

आठवीं माँ महागौरी – अर्थात गौरवर्ण वाली माता महागौरी ।

नवमी माता सिद्धिदात्री – अर्थात सभी सिद्धियों को देने वाली माँ ।

विशेषतः नवरात्रियाँ वर्ष में चार मानी गयी हैं । पहली पौष, दूसरी चैत्र, तीसरी आषाढ और चौथी अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में आती है । पहली तीन तो गुप्त नवरात्री के रूप में मानायी जाती है । अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मुख्य नवरात्रि मनायी जाती है । इसमें प्रतिपदा से नवमी तक नवरात्रि मानी गयी है । दशमी के दिवस को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है ।

नवरात्रियाँ मनाने के पीछे कई वैज्ञानिक कारण भी हैं । वर्ष में दो नवरात्रि प्रायः ऋतुपरिवर्तन अर्थात संधिकाल के समय में मनायी जाती हैं । कहते हैं जब ऋतुओं में परिवर्तन होता है तब उस समय आयुर्वेद के अनुसार आमतौर पर शरीर में वात, पित्त, कफ प्रकुपित हो उठते हैं । इस समय में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है । अतः इन दिनों में व्रत उपवास एवं पूजा उपासना करने से रोग प्रतिकारक क्षमता बढती है । शरीर स्वस्थ रहता है । कहा जाता है कि नवरात्र शब्द ‘नव अहोरात्र’ अर्थात विशेष रात्रियों का सूचक है । इन रात्रियों में प्रकृति व जीवन के बहुत सारे अवरोध नष्ट हो जाते हैं । वैज्ञानिक रूप से भी माना गया है कि यदि आप दिन में आवाज लगायें तो वह कम दूरी तक जायेगी, इसके विपरीत यदि आप रात में आवाज दें तो वह ज्यादा दूरी तक जाती है । इसीलिए इन नवरात्रियों में जप, साधना, तपस्या, व्रत, उपवास आदि का बहुत महत्व है । यह परम पवित्र नवरात्रियाँ हैं । हमारे पुराणों व धर्मशास्त्रों के अनुसार इन दिनों में व्रत करने से माँ भगवती प्रसन्न होती हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं ।

पुराणों में कथा आती है कि राक्षस महिषासुर वरदान प्राप्त करके बहुत ही अहंकारी हो गया था । जिसने तीनों लोकों में त्राही-त्राही मचा रखी थी । जब सभी देवता अपने सारे प्रयत्न करके भी उसे न हरा सके, तब सभी देवताओं ने त्रीदेवों अर्थात भगवान ब्रह्मा – विष्णु – महेश के साथ मिलकर, नौ दिनों तक माँ आदिशक्ति की आराधना की । जिससे उन सभी के शरीरों से एक दिव्य तेज निकला, जिसने सबके देखते ही देखते एक दिव्य स्त्री माँ दुर्गा का रूप धारण कर लिया । सभी देवताओं ने अपने सभी अस्त्र शस्त्र उन्हें युद्ध के लिए दे दिये । सभी अस्त्रों-शस्त्रों से सुसज्जित माँ दुर्गा ने सिंह पर आरूढ होकर राक्षस महिषासुर का अंत कर दिया था । महिषासुर का अंत करने के कारण माता महिषासुर मर्दिनी कहलायीं । तभी से ये नवरात्री का पर्व मनाया जाता है । माँ दुर्गा ने सभी देवों से प्रसन्न हो उनको वरदान दिया था कि इन नौ दिनों में जो कोई मेरी उपासना करेगा उसे शक्ति, सम्पदा, धनधान्य, व विशाल मति कि प्राप्ति होगी । महिषासुर से युद्ध करने के लिए सभी देवीयाँ भी माँ दुर्गा में समा गयी थी, जिससे इन दिनों में देवी के नौ रूपों की पूजा करने से सभी देवीयों की पूजा का फल भी प्राप्त होता है । इसलिए इन दिनों में देवी की उपासना विशेष रूप से की जाती है ।

नवरात्रि की एक कथा और भी प्रसिद्ध है जिसका संबंध दशहरे पर रावण दहन से भी माना गया है । कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने भगवान श्रीराम से रावण पर विजय पाने के लिए इन नवरात्रि के दिनों में देवी की उपासना, पूजन व हवन करने के लिए कहा था । जिससे ये युद्ध माँ शक्ति की कृपा से शीघ्र जीता जा सके । माता के हवन व पूजन के लिए एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गयी थी । भगवान श्री राम जब पूजा कर रहे थे, तब एक सौ आठ नीलकमल में से परीक्षा हेतू माता ने एक कमल गायब कर दिया, जब पूजन के लिए कमल नहीं मिला तो प्रभु श्रीराम ने पूजा को पूर्ण करने के लिए सोचा कि लोग मुझे भी तो नवकंज लोचन कमल नयन कहते ही हैं । तो क्यों न मैं कमल के स्थान पर अपनी आँख ही माँ भगवती को भेंट कर दूँ । तब ऐसा सोचकर जैसे ही उन्होंने तूणीर से बाण निकाला तो माता ने उनका हाथ पकड लिया और उन्हें विजयश्री का वरदान दिया । दूसरी तरफ रावण भी अमरता के लोभ और विजय की कामना से नवरात्रि के दिनों में माँ चंडी का यज्ञ करने लगा था । हनुमान जी ने सोचा यदि रावण का ये यज्ञ पूर्ण हो गया तो रावण अजेय हो जायेगा । इसलिए उन्होंने ब्राह्मण बालक का भेष बनाकर पहले ही रावण के यजमान ब्राह्मणों को खूब सेवा सुश्रुशा करके प्रसन्न कर लिया । बालकरूपधारी हनुमानजी की निःस्वार्थ सेवा को देखकर ब्राह्मणों ने उनसे वर माँगने को कहा ! इस पर हनुमानजी ने कहा विप्रवर यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे यह वरदान दीजिये कि, जिस मंत्र से आप रावण का यज्ञ करवा रहे हैं, उसका बस एक अक्षर बदल दीजिए । सभी यजमान ब्राह्मण इसके पीछे के रहस्य को नहीं समझ पाये और तथास्तु बोल दिया । उस मंत्र में जयादेवी… भूर्तिहरिणी में ‘ह’ की जगह पर ‘क’ बोलने के लिए हनुमानजी ने उन ब्राह्मणों को रिझा लिया । जिसे उन ब्राह्मणों ने भी स्वीकार कर लिया । भूर्तिहरिणी का मतलब होता है पीड़ा को हरने वाली और ‘भूर्तिकरिणी’ का मतलब हो गया पीड़ित करने वाली । इस मंत्र के गलत उच्चारण का फल ये हुआ कि देवी रुष्ट हो गईं और इसके परिणाम स्वरूप रावण का सर्वनाश हो गया ।

ऐसी और भी कथाएँ नवरात्री के विषय में पढी और सुनी गयी हैं । सारांश यह है कि ये दिन माँ शक्ति की उपासना के विशेष दिन हैं । नवरात्रि के समय में देवी माँ के सभी शक्तिपीठों पर पूरे भारत में बडे भारी मेले लगते हैं । देवी माँ के सभी शक्तिपीठों का भी अलग अलग महत्व है । लेकिन माता का स्वरूप एक ही माना गया है ।

नवरात्रि के प्रथम दिन से ही अपने पूजा स्थल पर पानी से भरे कलश की स्थापना की जाती है एवं उसकी नौ दिनों तक पूजा भी की जाती है । नवरात्री के प्रथम तीन दिन उर्जा व शक्ति की उपासना माँ शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा के रूप में की जाती है । जिससे जीवन में उर्जा व शक्ति की वृद्धि होती है । मध्य के तीन दिन माँ कूष्माण्डा, स्कंदमाता व कात्यायनी की पूजा विशेष रूप से लक्ष्मी, धन, सम्पदा व सौभाग्य पाने के लिए की जाती है । अंतिम तीन दिन कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री माँ की उपासना कला और ज्ञान की देवी माँ सरस्वती के रूप में की जाती है, जो बुद्धि, पवित्र मति, ज्ञान की दात्री देवी हैं । नवरात्रि का नौवां दिन नवरात्रि का अंतिम दिन भी होता है । यह महानवमी के रूप में भी मनाया जाता है । इस दिन विशेष रूप से कन्या पूजन किया जाता है । नौ कन्याओं को जो अभी तक यौवन अवस्था में न पहुँची हों, लगभग 9 वर्ष तक के बीच की कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर अपने घर पर आमंत्रित किया जाता है । उनमें देवी का स्वरूप देखकर उनके चरणों को धोकर । उनका पूजन किया जाता है और उन्हें भोजन कराया जाता है उसके बाद ही ये उपवास संपन्न माना जाता है । देवी स्वरूपा कन्याओं को उपहार स्वरूप वस्त्र या सामर्थ्य अनुसार कुछ वस्तु और कुछ पैसे भेंट स्वरूप दिये जाते हैं ।

चतुर्मास में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है । इस चतुर्मास के समाप्त होने के पश्चात ये नवरात्रे प्रारंभ होते हैं । जिसमें जो कार्य स्थगित किए गए होते हैं, उन्हें आरम्भ किया जाता है । क्षत्रियों के लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार माना गया है । इस दिन ब्राह्मण सरस्वती पूजन करते हैं तथा क्षत्रिय अपने शस्त्र का पूजन भी करते हैं । नवरात्री के बाद आने वाला विजयादशमी या दशहरा एक राष्ट्रीय पर्व भी है ।

नवरात्रि वैसे तो पूरे भारत भर में बडे ही धूमधाम से मनायी जाती हैं । परंतु गुजरात राज्य में इसका विशेष रूप देखने को मिलता है । रंग रंग के कपडों को पहनकर गरबा नृत्य करते, माता की उपासना व आरती करते, गुजरात राज्य के हर गली, हर शहर और हर गाँव में लोगों को देखा जा सकता है । जो छटा देखने में बहुत ही अनुपम जान पडती है ।

नवरात्रि व्रतों में ख्याल रखने योग्य कुछ बाते हैं जैसे हो सके तो नवरात्रि का व्रत करने वाले लोग अपनी दाढ़ी-मूंछ एवं बाल को न कटवायें । यदि आपने कलश स्थापित किया हो तो पूरे दस दिनों तक अखण्ड ज्योत जलाकर रखें और उस स्थान को खाली ना छोड़ें । नौ दिन तामसी भोजन का त्याग करें और लहसुन व प्याज के सेवन से दूर रहें । व्रत करने वाले व्यक्ति हो सके तो अनाज का सेवन न करके फलाहार करें । पुराणों के अनुसार दिन के समय सोना वर्जित माना गया है । व्रत के दिनों में  मांस, शराब और तम्बाकू का सेवन पूर्णतः वर्जित होता है ।

सुख, सम्पदा, धन लक्ष्मी, शक्ति, व बुद्धि की प्राप्ति के लिए माँ भगवती के ये नौ दिन कि उपासना अवश्य करें और अपने बच्चों को भी इन दिनों में उपासना व व्रत करने के लिए प्रेरित करें । सनातन संस्कृति के संस्कार हर घर और हर बालकों तक पहुँचायें । ताकि हमारी भावी पीढी शक्तिसंपन्न व समृद्ध शाली हो इसी कामना के साथ ।

जय माता जी ।


Share to the World!

Subscribe Here

vedictale.com की हर नई कथाओं की notification पाने के लिए नीचे अपना नाम और इमेल डालकर सबस्क्राईब करें।

New Stories

Related Stories

error: Content is protected !! Please read here.