पद्मा या परिवर्तिनी एकादशी कथा | पद्मा एकादशी कब आती है?
वैसे तो एकादशी की महिमा का वर्णन करने को शास्त्र में शब्द ही कम पड जाते हैं । क्योंकि ये व्रत सब व्रतों में उत्तम और हर युग में मनोवांच्छित फल प्रदान करने वाला है । भोग और मोक्ष दोनों ही एकादशी व्रत करने से प्राप्त होते हैं । ऐसा शास्त्रों में वर्णन हैं । तो आईये जानते हैं पद्मा या परिवर्तिनी एकादशी की कथा, जिसको सुनने मात्र से असंख्य पाप नष्ट हो जाते हैं ।
एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर से और नारद जी ने ब्रह्मा जी से पद्मा एकादशी की महिमा कही थी । कहते हैं भादो के शुक्लपक्ष में पद्मा नाम की ये अत्यंत पवित्र एकादशी आती है । इस दिन भगवान ऋषिकेश का पूजन करने, एवं एकादशी का व्रत करने से असंख्य पुण्यों की प्राप्ती होती है ।
एक समय की बात है सूर्यवंश में मानधाता नाम के चक्रवर्ती राजा हो गये । वे अपने औरस पूत्रों की ही तरह धर्मसहित प्रजा का पालन पोषण किया करते थे । राजा के राज्य में कोई भी दुःखी नहीं था तथा प्रजा सदैव प्रसन्न रहा करती थी । संक्षेप में कहें तो राजा का राज्य कल्पवृक्ष के समान और उनके राज्य की धरती कामधेनू की ही तरह थी ।
एक बार किसी कारण से राजा के राज्य में तीन सालों तक बारिश नहीं हुई । इससे प्रजा भूखी मरने लगी । अकाल जैसी स्थिती बन गयी । प्रजा ने राजा से गुहार लगाई की हे राजन ! हमारी रक्षा किजीये ! रक्षा किजीये !
राजा मानधाता भी धर्मात्मा राजा थे । उनसे प्रजा का दुःख देखा नहीं जाता था । जब सभी प्रयत्न करके राजा थक गये, तब राजा इस समस्या का हल ढूँढने जंगल की ओर निकल पडे । ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे ऋषियों-मुनियों-तपस्वियों को देखकर राजा ने सादर प्रणाम किया । तब ऋषियों में श्रेष्ठ अंगिरा ऋषि को देखकर, राजा ने मुनिवर को नमन करके, अपने राज्य में आये संकट से उबरने का उपाय पूछा ।
ऋषि बोले – राजन ! एक उपाय है । जिससे आपके राज्य में, जो अकाल आया है, वो मिट जायेगा । राजन भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी आती है, वो पद्मा नाम से जानी जाती है । इस एकादशी का आप और आपकी समस्त प्रजा मिलकर व्रत किजिये । जिसके प्रभाव से आपके राज्य में अवश्य बरसात होगी और अकाल भी मिट जायेगा ।
अंगीरा ऋषि के कहे अनुसार राजा ने ऐसा ही किया । राजा ने अपने परिवारजनों एवं समस्त प्रजा के साथ इस एकादशी का व्रत किया और भगवान ऋषिकेश का पूजन किया । जिसके पुण्य प्रताप से बारिश होने लगी और चारों और हरियाली छा गयी । समस्त प्रजा सहित राजा भी सुखी हुए ।
भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर जी को और भगवान ब्रह्माजी नारदजी को कहते हैं, कि इस उत्तम व्रत का सदैव पालन करना चाहिए, और इस दिन जल से भरे घडे को वस्त्र से ढंककर दही, चावल, छाता और जूते के साथ किसी ब्राह्मण को दान देना चाहिए । एकादशी से अगले दिन अर्थात द्वादशी को भगवान गोविन्द को प्रार्थना करनी चाहिए कि हे भगवान गोविन्द आपको नमस्कार है ! नमस्कार है ! मेरी पापराशि का नाश करके आप मुझे सब प्रकार के सुख प्रदान करें । आप पुण्यात्माओं को भोग और मोक्ष प्रदान करने वाले तथा सुख दायक हैं । आपको प्रणाम है ! आपको प्रणाम है ! इस प्रकार भगवान का पूजन करें ।
ऐसा कहा जाता है, इस एकादशी की व्रत कथा को, पढने और सुनने से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है ।