Sharad Purnima 2021 : शरद पूर्णिमा व्रत कथा एवं महत्व (ऑडियो सहित)

शरद पूर्णिमा व्रत कथा एवं महत्व sharad purnima scientific reason

 

शरद पूर्णिमा क्यों मनाते हैं ?

शरद पूर्णिमा को पूरे वर्ष की सभी पूर्णिमाओं में सबसे श्रेष्ठ माना गया है । आश्विन मास में आने वाली इस पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा, कोजागर पूर्णिमा, कौमुदी व्रत या रास पूर्णिमा भी कहा जाता है । इस दिन चंद्रदेव 16 कलाओं से पूर्ण होते हैं । हमारे हिन्दू धर्मग्रंथ श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार चन्द्रमा औषधियों के देवता माने गये हैं । इस दिन चंद्रमा कि किरणों से अमृत वर्षा होती है । जिससे पृथ्वी पर सभी पेड, पौधे, जीव, जन्तु मानव आदि सभी जीव पुष्ट होते हैं ।

शरद पूर्णिमा का वैज्ञानिक महत्व क्या है ?

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वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इस दिन कि बडी भारी महिमा मानी गयी है । वैज्ञानिकों ने भी इस दिन को खास माना है, इसके पीछे कई वैज्ञानिक कारण भी छिपे हैं । इस पूर्णिमा पर दूध व चावल से बनी खीर को चांदनी रात में रखकर, उसका सेवन किया जाता है । इससे रोगप्रतिकारक क्षमता बढ़ती है । एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात औषधियों का प्रभाव बहुत अधिक हो जाता है । इस रात पौधों में रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है । दूसरा वैज्ञानिकों के अनुसार दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है । यह तत्व शरद पुर्णिमा के चंद्रमा से पडने वाली किरणों में अधिक मात्रा में पाया जाता है । इन किरणों से दूध इस शक्ति को अधिक मात्रा में शोषित करता है । चावल में स्टार्च होने के कारण यह क्रिया और भी आसान हो जाती है । इसी कारण हमारे दूरदृष्टा ऋषि-मुनियों संतों ने शरद पूर्णिमा की रात को खीर खुले में चंद्रमा कि किरणों में रखने का विधान बताया है । इस खीर का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण बताया है । यदि इस खीर को चांदी के पात्र में चंद्रमा कि किरणों में रखा जाये तो विशेष लाभ होता है । चांदी में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है । अगर चाँदी का पात्र न हो तो स्वर्ण व चाँदी के आभूषण भी इस खीर में डालकर किसी भी पात्र में इसे रख सकते हैं । ऐसा करने से विषाणु दूर रहते हैं । इस रात्रि को हो सके तो 30 मिनट तक चंद्रमा कि किरणों को शरीर पर पडने देना चाहिए । इससे पुनर्योवन शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है । इस रात्रि में चंद्रमा के सामने सुई में धागा अवश्य पिरोएं और चंद्रमा पर त्राटक करें, चंद्रमा को एकटक निहारें । इससे आँखों की रोशनी भी बढती है । निरोग रहने के लिए पूर्ण चंद्रमा जब आकाश के मध्य में स्थित हो, तब उनका पूजन करें । इस दिन बनने वाला वातावरण दमा के रोगियों के लिए भी विशेषकर लाभदायी माना गया है । यह हमारी शास्त्रीय परंपरा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर भी आधारित है ।

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शरद पूर्णिमा का पौराणिक महत्व व कथा ?

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पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात्री, देवी माँ लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी । इसलिए इस तिथि को धन-दायक तिथि भी माना जाता है । ऐसा भी माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ गरूड़ पर बैठकर पृथ्वी लोक में भ्रमण के लिए आती हैं । इस दौरान जो लोग रात्रि में माता लक्ष्मी व प्रभू श्री नारायण का पूजन करके जागरण करते हैं, उन पर इनकी विशेष कृपा दृष्टि बनी रहती है और माता लक्ष्मी उन्हें धन-वैभव प्रदान करती हैं । शरद पूर्णिमा के दिन मां विचरण करती है और सबपर कृपा बरसाती हैं । जो इस रात्रि सोता रहता है, उसके द्वार से माता लक्ष्मी लौट जाती हैं । कहते हैं कि शरद पूर्णिमा व्रत करने वाले को, माता लक्ष्मी कर्ज से भी मुक्ति दिलाती हैं । यही कारण है कि इस पूर्णिमा का एक नाम कर्जामुक्ति पूर्णिमा भी है । शास्त्रों के अनुसार, इस दिन पूरी प्रकृति मां लक्ष्मी का स्वागत करती है । ऐसा भी कहते हैं कि इस रात को देखने के लिए सभी देवतागण स्वर्ग से धरती पर आते हैं ।

Shri Krishna and Gopi Raslilaश्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के संग वृंदावन निधिवन में रासलीला भी की थी । जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अनेक रूप धारण कर सभी के संग नृत्य भी किया था । संतों द्वारा समझाया गया इसका एक विशेष दृष्टिकोण भी है जिसे हमें अवश्य समझना चाहिए । जिससे हमें हमारे शास्त्रों के गूढ रहस्य और महिमा का पता चलता है । हमारे शास्त्रों के अनुसार गो इंद्रियों को भी कहा गया है । आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा इन पाँचों को कर्म इंद्रियाँ कहा गया है और इन इंद्रियों से मिलने वाले ज्ञान को ग्रहण करने वाली पाँच ज्ञान इंद्रियाँ मानी गयी हैं । जैसे आँख का देखना कर्म व पढना ज्ञान है, नाक का श्वाँस लेना कर्म व सूँघना ज्ञान है, कान का सुनना कर्म व शब्द समझना ज्ञान है, जीभ का बोलना कर्म व स्वाद लेना ज्ञान है, त्वचा का स्पर्श कर्म व गर्म-ठंडा महसूस करना ज्ञान है । इस प्रकार कुल 10 इंद्रियाँ मानी गयी हैं । हमारे शरीर में 5 कर्मेंद्रियाँ व 5 ज्ञानेंद्रियाँ होती हैं इन सब को संचालित मन करता है और मन को संचालित बुद्धि करती है । बुद्धि उस आत्मा से जूडी होती है । इसलिए जब आत्मा शरीर को छोड देती है तब शरीर तो होता है परंतु इससे कुछ भी कर्म या ज्ञान नहीं हो पाता । तब इस शरीर का कोई महत्व नहीं रह जाता । जैसे हमारे शरीर में आत्मा व्याप्त है वैसे ही इस संसार के कण कण में वो परमात्म सत्ता व्याप्त रहती है । जिससे ये सारा संसार संचालित होता है । नहीं तो इतने अनुशासित ढंग से पृथ्वी जल, अग्नि, वायू और आकाश एवं ये पूरा ब्रह्माण कैसे इतने करोडों वर्षों से चल रहा है । इसलिए इस शरद पुर्णिमा को उस आत्मा से परमात्मा के मिलन का महोत्सव भी माना जाता है ।

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शरद पूर्णिमा की पूजा विधि

कैसे करें शरद पूर्णिमा की पूजा?

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इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र नदी में स्नान कर सकें तो बहुत अच्छा, नहिं तो स्नान के पानी में थोडा गंगाजल मिलाकर, सप्तधान्य उबटन (गेहूँ, जौ, चावल, मूँग, चना, उड़द और तिल को मिलाकर पीसा गया आटा) को थोडा गीला करके पेस्ट बना लें, इसे शरीर पर मलकर स्नान करने से बहुत लाभ होता है । ऐसे स्नान करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें । माथे पर चंदन या कुमकुम का तिलक लगायें, एवं दाहिने हाथ में मोली धारण करें । फिर एक लकड़ी की चौकी अथवा पटिये पर लाल वस्त्र बिछाकर, उस पर गंगाजल छिड़कें और उस स्थान को शुद्ध कर लें । चौकी पर भगवान नारायण व माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें और उन्हें लाल चुनरी चढायें । फिर दीप जलाकर धूप से सुगंधित वातावरण करें व लाल फूल, इत्र, नैवेद्य, धूप-दीप, सुपारी आदि से मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा करें । फिर थोडा समय उस स्थान पर बैठकर शांति पूर्वक भगवन्नाम का जाप करें । अगर आपके कोई गुरु हैं, और आपने उनसे गुरुमंत्र लिया है, तो आप अपने गुरुमंत्र का भी जाप कर सकते हैं । अगर लक्ष्मी चालीसा का पाठ कर सकें तो बहुत अच्छा । इतना करने के बाद आरती करें । इसके पश्चात दिन में यदि व्रत करना है तो व्रत का संकल्प लें और अपनी पीडा – प्रार्थना भगवान श्रीहरि और माता लक्ष्मी के सन्मुख रखें एवं उनके कान में बतायें, ऐसा करने से आपको व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है । शाम के समय पुनः माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु का पूजन करें और चंद्रमा को मंत्र बोलकर अर्घ्य भी दें ।

मंत्र है –

दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।

इसके बाद गाय के दूध व चावल की खीर हो सके तो लोहे के पात्र में बनाकर उसे चाँदी के बर्तन में या मिट्टी के बर्तन में रखें, अगर चाँदीका पात्र न हो तो उसमें चाँदी-सोने के गहने डालकर भी चंद्रमा की रोशनी में रख सकते हैं । इससे सोने-चाँदी का प्रभाव भी उसमें आ जाता है जो वैज्ञानिक दृष्टी से भी शरीर के लिए महत्वपूर्ण माना गया है । मध्य रात्रि में (लगभग 12.30 के बाद) भगवान श्रीहरि व माता लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं और प्रसाद के रुप में परिवार के सभी सदस्यों को बाँटकर खायें ।

शरद पूर्णिमा की कथा

शरद पूर्णिमा की प्रचलित कथा इस प्रकार है । प्राचीनकाल में एक साहुकार हो गया जिसकी दो बेटीयाँ थी । दोनो बेटियाँ शरद पुर्णिमा का व्रत किया करती थी । बडी बेटी तो पूरा व्रत बडी श्रद्धा से किया करती थी, पर छोटी बेटी थोडी नास्तिक प्रवृत्ति की थी । जो इस व्रत को पूरा न करके अधूरा छोड दिया करती थी । जब बेटियाँ बडी हुई तो उनकी शादी भी संपन्न परिवारों में हो गयी । व्रत करने के कारण इनको अच्छा घर, परिवार, धन, संपदा तो प्राप्त हुई, परंतु छोटी बेटी के इस व्रत की महिमा को न समझकर इस व्रत को अधूरा छोडने का परिणाम यह निकला, कि छोटी बेटी की कोई संतान न हो सकी, और जो सन्तान पैदा भी होती वो पैदा होते ही मर जाती थी । बहुत जगह जाने व बहुत प्रयत्न करने पर भी छोटी बेटी को संतान न हो सकी । छोटी बेटी ने पंडितो से इसका कारण पूछा, तो उन्होने बताया की तुमने शरद पूर्णिमा के व्रत का अपमान किया एवं उसे अधूरा छोड दिया था । जिसके कारण तुम्हारी सन्तान नहीं हो रही है या होते ही मर जाती है । यदि तुम शरद पूर्णिमा का व्रत पूरा करोगी तो तुम्हारी संतान जीवीत रह पायेगी । जिससे तुम्हें उत्तम पुत्र की भी प्राप्ति होगी, या तो किसी व्रत करने वाले का आशीष व स्पर्श तुम्हारे बेटे को प्राप्त हो जाये, तो भी उसके प्राण बच सकते हैं । उस छोटी बेटी ने व्रत तो पूरा किया जिससे उसे एक बेटा प्राप्त हुआ परंतु वह भी शीघ्र मर गया । छोटी बेटी ने बच्चे को पीढे पर लेटाकर उस पर कपडा ढक दिया और अपनी बडी बहन को बुलाकर लाई । उसने बहन को बैठने के लिए वही पीढा दे दिया । बडी बहन जब बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया । घाघरे को छूते ही बच्चा जीवित हो उठा और रोने लगा । बडी बहन बोली – बहन तुम क्या मुझे कंलक लगाना चाहती थी । कहीं मेरे बैठने से तुम्हारा ये बेटा मर जाता तो…। तब छोटी बहन बोली – दीदी ! मेरा बच्चा तो पहले से मरा हुआ था । आपके पुण्य प्रभाव से यह जीवित हो उठा है । इसके बाद तो पूरे नगर में ये बात फैल गयी और नगर में इन्होंने शरद पूर्णिमा के व्रत का महत्व सबको बताया जिससे सभी लोग भी इस महान पुण्यदायी तिथी का लाभ प्राप्त करने लगे । सारांक्ष यह है कि शरद पूर्णिमा का व्रत व रात्री जागरण स्वास्थ्य, पुण्य, धन-संपदा, सुख, समृद्धी देने वाला है और कर्जे से मुक्ति भी दिलाता है । इस दिन का व्रत सभी को अवश्य करना चाहिए जिससे अनेकों लाभ होते हैं । शास्त्रों में इस व्रत की बहुत महिमा गायी गयी है । हम सभी को शरद पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए और अपने बच्चों को भी इस व्रत को करने के लिए प्रेरित करना चाहिए ।


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