ईमानदार बालक की कहानी
यह घटना बंगाल के मानदा शहर की है । एक बार की बात है इस शहर के बगीचे में बारह-तेरह साल का एक छोटा लडका टहल रहा था । इतने में एक बडा व्यापारी बहुत सामान के साथ वहाँ आया । थोडा विश्राम करने के बाद वह व्यापारी वहाँ से चल दिया । परंतु वह व्यापारी अपनी रूपयों से भरी एक थैली वहीं भूल गया । उस बालक ने जब उस थैली को उठाकर देखा तो उसमें पाँच हजार रूपये थे । यह उस बालक की ईमानदारी ही थी की उसने निश्चय किया कि इस थैली को उसके मालिक के पास पहुँचाना चाहिए ।
उधर वो व्यापारी काफि दूर जा चुका था । रास्ते में उस व्यापारी जब रूपयों से भरी थैली न होने का पता चला तो वो बहुत परेशान हो गया औऱ तुरंत ही उस बगीचे की ओर वापिस दौडकर आया । बगीचे में अपनी थैली ढूँढने लगा । बालक ने जब उस व्यापारी को परेशान देखा तो पूछा – क्या आपकी कोई चीज खो गयी है । व्यापारी बोला – हाँ बेटा ! मैं यहाँ अपनी रूपयों से भरी थैली भूल गया था । बालक ने उसे थैली दिखाकर पूछा क्या ये थैली आपकी है । हाँ – हाँ यही है ! यही है ! व्यापारी खुश होकर बोला । ये मेरी ही थैली है ।
व्यापारी ने थैली खोलकर पैसों को गिना तो एक भी रूपया उसमें से कम न था । व्यापारी के आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि ये कैसा बालक है आज के समय में भी ऐसा ईमानदार बालक हो सकता है । उसने बालक से पूछा बालक तुमको ये रूपये देखकर लालच नहीं आया कि मैं इनमें से कुछ रूपये रख लूँ ।
बालक बडे प्रेम से उत्तर दिया – नहीं श्रीमान ! मैंने बचपन से यही सीखा है कि दूसरों के धन को मिट्टी के समान समझना चाहिए और कभी किसी के साथ धोखा या चोरी नहीं करनी चाहिए । जब ये धन मेरा न था तो मैं इसमें से कैसे एक भी रूपया रख सकता था ।
बालक की ईमानदारी देखकर व्यापारी बहुत खुश हुआ और बालक को ईनाम स्वरूप कुछ पैसे देने लगा । पर उस बालक ने कहा । मैंने आपके पैसे वापस लौटाये ये मेरा धर्म था । इसमें ईनाम की क्या आवश्यकता है । ये तो मेरा कर्तव्य था न जाने कितनी मेहनत करके व्यक्ति एक एक पैसा एकत्र करता है । इसकी कीमत तो वो ही जानता है जिसने मेहनत करके इन्हें कमाया है । अगर मैं आपके पैसे आपको न लौटाता तो मैं बेईमान कहलाता । बेईमानी भरा जीवन से ईमानदारी का जीवन लाखों गुना फलदायी और अच्छा है । अतः श्रीमान मुझे ईनाम की कोई आवश्यकता नहीं है ।
उस बालक के सरल हृदय और भलाई से भरे दिल को देखकर वो व्यापारी भी दंग रह गया । उसने ये घटना समाचार पत्रों में छपवाई । उस बालक की सच्चाई और सज्जनता की कहानी को यादकर के वो व्यापारी कहता है कि उस बालक ने मुझपर कितना बडा उपकार किया था, उसका वर्णन मैं नहीं कर सकता और प्रतिदिन यही प्रार्थना करूँगा । कि भगवान ऐसे बालक को लम्बी उम्र प्रदान करे ताकि वो समाज और देश की भलाई कर सके ।
उस बालक का नाम था ‘वीरेश्वर मुखोपाध्याय’ । उनके इन गुणों ने उन्हें लोकप्रिय और सभी के आशीर्वाद का पात्र बना दिया ।
प्रेरणा – इस कथा से हमें ये प्रेरणा मिलती है । सदगुणों से बडा कोई धन नहीं है । इसलीए हमें भी ईमानदार होना चाहिए ।