पूरी दुनिया आज भारत के योग, आयुर्वेद, अध्यात्म और दर्शन को स्वीकार रही है । हमारे देश की महान विभूती स्वामी विवेकानंदजी एक योगी और दिव्यदृष्टा संत थे । उनके जीवन की कई अदभुत चमत्कारिक घटनाएँ आज के युवा के लिए प्रेरणास्रोत हैं ।
बात उस समय की है जब स्वामी विवेकानंद और देश के सबसे बड़े औद्योगिक कंपनी के संस्थापक जमशेद टाटा की मुलाकात हुई थी । कहते हैं 1893 में स्वामी विवेकानंद शिकागो के धार्मिक सम्मेलन में शामिल होने पानी के जहाज से जा रहे थे । उसी शिप में जमशेद टाटा भी सवार थे । इस यात्रा के दौरान स्वामीजी और जमशेदजी टाटा में बहुत सी बातचीत हुई थी । जमशेद टाटा स्वामी जी के विज्ञान, तकनीक, अर्थशास्त्र, उद्योग और खनिजों के संबंध में गहरी जानकारीयों को देखकर दंग रह गए थे । जब जमशेद टाटा ने स्वामी जी से भारत में लौहे कि फैक्ट्री डालने के लिये पूछा तो स्वामी जी ने जहाज में बैठे-बैठे एक ही पल में आँखें बंद करके उन्हें सिंहभूम में फैक्ट्री लगाने की सलाह दी थी ।
लौह खनिज संपदा उस क्षेत्र में भरपूर होने की जानकारी भी दी थी । उनके आदेशानुसार ही जमशेद टाटा ने वहाँ फैक्ट्री लगाई और टाटा कंपनी का इतना विस्तार हुआ । स्वामी विवेकानंदजी से सलाह लेकर ही जमशेद टाटा ने देश की प्रतिष्ठित टाटा स्टील कंपनी की बुनियाद जमशेदपुर शहर में रखी थी । कैसे दिव्यदृष्टा हैं न भारत के महान संत ! आज भी टाटा स्टील कंपनी के संग्रहालय में उपलब्ध दस्तावेज में स्वामी विवेकानंद और जमशेदजी टाटा के बीच हुई बातचीत का ब्योरा है ।
स्वामी जी के जीवन की एक घटना और भी काफी प्रसिद्ध है । स्वामी विवेकानंद रोज पढने के लिए लाईब्रेरी से एक पुस्तक लिया करते थे और शाम के समय वो पुस्तक वापिस करके नई पुस्तक ले लिया करते थे ।
कुछ दिनों तक ऐसे करने पर लाईब्रेरियन ने जब स्वामीजी से कहा – कि जब आपको किताब पढनी ही नहीं होती तो रोज किताब ले क्यों जाते हैं ।
तब स्वामी विवेकानंद जी ने बडी ही सरलता से उत्तर दिया – महाशय ! मैं रोज इन किताबों को पढता हूँ ।
लाईब्रेरियन ने व्यंग कसते हुए पूछा – आप इतनी मोटी किताब को एक ही दिन में पूरा पढ लेते हैं ।
स्वामी जी ने उत्तर दिया – हाँ ! मैं पूरा पढ लेता हूँ ! आपको यदि संशय हो तो मुझसे इन पुस्तक में से कुछ भी प्रश्न पूछ सकते हैं ।
लाईब्रेरियन झल्लाकर उन्हीं में से एक पुस्तक उठाई और स्वामी जी से प्रश्न पूछ लिया !
ये जानकर आपको अति गर्व होगा की ! हमारे देश के उन महान संत ने केवल एक प्रश्न ही नहीं, बल्कि जितने भी प्रश्न ! जिस भी पुस्तक से ! उस लाईब्रेरियन ने पूछे ! स्वामी जी ने सभी का पेज नंबर के साथ सटीक जवाब दिया । जिस पुस्तक को एक दिन में पूरा पढना भी किसी व्यक्ति के लिए असंभव कार्य हो, उसे मात्र एक ही दिन में स्वामी जी ने पूरा कंठस्थ कर लिया था ।
इस अद्भुत चमत्कार से लाईब्रेरियन का भी शीश झुक गया और उसने स्वामी जी की महानता को प्रणाम किया । ऐसी विलक्षण मती के धनी ! भारत के महान संत थे स्वामी विवेकानंद जी । ऐसे संतों को याद करके ही मन गौरवान्वित हो जाता है और शीश उनको नमन करने के लिए सहज ही झुक जाता है ।